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गज़ल - नजरों को नजारे मिल गये // वेदिका

वज्न / २१२२ २१२२ २१२ 

चाह थी जिनकी, हमारे मिल गये 

गुम कहीं थे ख्वाब, सारे मिल गये.

 

एक धागा बेल के धड़ से मिला 

बेसहारों को सहारे मिल गये 

.

हम अकेले, भीड़ थी, तन्हाई थी 

और तुम बाहें पसारे मिल गये

.

डूबती नैया के तुम पतवार हो 

साथ तेरे हर किनारे मिल गये 

.

देख तुमको, जी को जो ठंडक हुयी 

यूँ कि नजरों को नजारे मिल गये 

.

सच अगरचे, देख के अनदेख हो 

झूठ जीतेगा, इशारे मिल गये    

                  

                             गीतिका ‘वेदिका’      

 

मौलिक / अप्रकाशित 

 

 

 

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Comment by वेदिका on August 6, 2013 at 12:48pm

आपका आभार आदरणीय जितेन्द्र 'गीत' जी! 

आपने रचना पसंद की, मुझे आत्मिक खुशी हुयी

आभार !! 

Comment by Aditya Kumar on August 6, 2013 at 12:10pm

बहुत ही सुन्दर रचना। हार्दिक बधाई !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 6, 2013 at 12:04pm

हम अकेले, भीड़ थी, तन्हाई थी 

और तुम बाहें पसारे मिल गये............वाह! मुझे ये शेर बहुत पसंद आया

.

देख तुमको, जी को जो ठंडक हुयी 

यूँ कि नजरों को नजारे मिल गये..........बहुत ही खुबसुरत शेर हुआ

दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीया गीतिका जी 

.

Comment by वेदिका on August 6, 2013 at 11:56am

आदरणीय अरुण श्री जी

आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया  रचना की सार्थकता का प्रमाण है

आभार !!

Comment by वेदिका on August 6, 2013 at 11:52am

आदरणीय शिज्जू जी! 

आपका शुक्रिया, आपने रचनाकर्म को प्रोत्साहित किया !

आदरणीय अरुण श्री जी ने वही बात कह दी जो मै कहना चाहती थी, आशा करती हूँ आपको स्पष्ट हुआ होगा|

स्नेह बनाये रखिये !  

Comment by वेदिका on August 6, 2013 at 11:50am

आदरणीय अरुण अनंत जी! 

रचना पर प्रस्तुत आपके सराहना मुझे सम्बल प्रदान करती है !

आभार !!

Comment by वेदिका on August 6, 2013 at 11:03am

शत कोटि आभार आदरणीयसौरभ श्रीवास्तव जी! 

आपने रचना को सराहा !!

Comment by वेदिका on August 6, 2013 at 11:03am

आदरणीया प्राची जी! 

रचना की सुकोमलता आपको प्रभावित कर सकी, लेखन धन्य हुआ ! 

Comment by Arun Sri on August 6, 2013 at 10:57am

हम अकेले, भीड़ थी, तन्हाई थी 

और तुम बाहें पसारे मिल गये ............. वाह ! कमाल का शे'र हुआ है ! बहुत ही सुन्दर एहसास ! भीड़ में अकेले रहना और ऐसे में किसी अपने का मिल जाना ! कितना सुखद !

देख तुमको, जी को जो ठंडक हुयी 

यूँ कि नजरों को नजारे मिल गये 

.

सच अगरचे, देख के अनदेख हो 

झूठ जीतेगा, इशारे मिल गये   ....... इस अच्छी गज़ल में ये अश'आर बहुत अच्छे लगे !



Comment by अरुन 'अनन्त' on August 6, 2013 at 10:35am

आदरणीया गीतिका वेदिका जी बेहद सुन्दर ग़ज़ल हार्दिक बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

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