तुम एक दिन तपकर तो देखो
अपने महलों से निकलकर तो देखो
आओ हम वहां चलते हैं
जहां ईंट बनती है
वो मिट्टी जो रात भर गलती है
बार –बार कटती है ,
तब सांचे में ढलती है
फिर भट्टी में तपती है
तब कहीं वो ईंट बनती है
जो आपके महलों की नींव बनती है
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत सुन्दर रचना ... बधाई
पार्थिव तत्व से सजीव भावनाओ का संचार ........
आपका साधुबाद !
आदरणीय हेमंत जी, सुन्दर बहुत खूब .......बधाई ..
ईंट से भवन निर्माण और नींव के पत्थर...|
भाव समेटे हुए एक सुंदर प्रयास के लिए शुभकामनाएं !!
आदरणीय हेमंत जी, सुंदर रचना अभिव्यक्ति, हार्दिक बधाई
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