प्रश्न होते हैं ,उत्तर भी होते हैं रास्ते ,
पूर्व-पश्चिम और दक्षिण
सभी दिशाओं मे होते हैं रस्ते
कभी घोड़ों की टापों से कुचले जाते हैं
तो कभी फूलों से सजाये जाते हैं रास्ते
क्या जमीं कया समुंदर आशमां मे भी होते हैं रास्ते
तो क्या मंजिले नसीब नहीं होती सभी को,
पर होते हैं सभी के अपने –अपने रास्ते
कभी मंजिल तक पहुचाते हैं तो कभी खुद मंजिल बन जाते हैं रास्ते
उनकी कहां मंजिलें होती हैं
जो खुद बनाते हैं रास्ते
थककर सो जाते हैं,सोकर उठ जाते हैं
जब वो कदम बढाते हैं तो बन जाते हैं रास्ते
कभी पहाड़ों से रोके जाते हैं,
तो कभी लहरों से मोड़े जाते,
रेगिस्तानी हवाओं मे गुम जाते हैं रास्ते
पर वो कहां भटकते हैं—जो खुद बनाते हैं
रास्ते
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
रस्ते पर बढ़िया विचार-
आभार आदरणीय-
सुंदर,सरल रचना अभिव्यक्ति पर, हार्दिक बधाई आदरणीय हेमंत जी
बहुत सुन्दर कथ्य प्रस्तुत करती अभिव्यक्ति ...
कभी पहाड़ों से रोके जाते हैं,
तो कभी लहरों से मोड़े जाते,
रेगिस्तानी हवाओं मे गुम जाते हैं रास्ते
पर वो कहां भटकते हैं—जो खुद बनाते हैं रास्ते..................................बहुत सुन्दर कहन
हार्दिक बधाई !
शिल्प के तौर पर यह अतुकान्त रचना अभी बहुत कसावट की मांग करती है.. शुरू की कुछ पंक्तियों में बार बार 'रास्ते' शब्द को न लिख कर भी कथ्य प्रभावी हो सकता है.
सतत लेखन संलग्नता व सजग पाठन यह आवश्यक तत्व स्वतः ही अभिव्यक्तियों को उपलब्ध कराते हैं
शुभकामनाएँ
उनकी कहां मंजिलें होती हैं
जो खुद बनाते हैं रास्ते- क्या बात हे हेंमत जी , बहुत बहुत बधाई हो , कमाल की सरलता से कही गई कविता
पर वो कहां भटकते हैं—जो खुद बनाते हैं
रास्ते..bilkul सही कहा है आपने ..हम तो दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा ....मनभावन इस कृति पर मेरी हार्दिक बधाई
हेमंत भाई , बहुत अच्छी ,सरलता से कही गई बात , रचना के लिये बधाई
कविता ह्रदय के भावो का सहज सरल प्रवाह है ... और मधुरता सरलता सहज भाव है आपकी इस रचना में ..बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर
आदरणीय श्याम जुनेजा जी धन्यवाद , आपकी बताई गयी बात का मै अवश्य ही ध्यान रखूंगा .......... सादर........
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