जलते रहे चिराग हवाओं से जूझकर
जिन्दा रहे थे हम भी गम में यूं डूबकर
चलते रहे थे हम भी लिए दिल में आस ही
वरना ठहर से जाते कभी हम भी टूटकर
बहने लगे थे हम भी लहरों के साथ ही
अब करते भी भला क्या कश्ती से छूटकर
वो हमसफ़र थे अपने मगर फिर भी मौन थे
कटती नहीं हयात मेरे यारों रूठकर
ले जायेगा मुझे भी इक दिन वो दूर यूं
अपनों के नाम होंगे नहीं लव पे भूलकर
जब से हुई हवा ये हवादिश की ही तरह
पीने लगे हैं छांछ सदा हम भी फूंककर
पीते रहे थे आशु जमाने का हम जहर
अपनी पे आये हम तो बोले थे फूटकर
मौलिक व अप्रकाशित
डॉ आशुतोष मिश्र , निदेशक ,आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश मो० ९८३९१६७८०१
Comment
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको! |
MATRIK KRAM DENE KI KRIPA KARE SAHAB OR PRAYASH ACHA HAI AAPKA
आदरणीय आशुतोष सर जी कृपया बहर से अवगत करायें, प्रयास हेतु बधाई स्वीकारें.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online