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आदरणीया विनीता शुक्ला जी, आपकी टिप्पणी निश्चित ही मुझे और बेहतर लिखने हेतु प्रेरित करेगी, बहुत बहुत आभार आदरणीया ।
आदरणीय सौरभ भईया जी, आपने रचना की गहराइयों को पहचान कर यथोचित टिप्पणी की है, रचना कर्म सार्थक हो गया क्योंकि जो लेखक कहना चाहता हो और हुबहू वही पाठक तक पहुँच रहा हो तो निश्चित ही रचना सफल हुई, उत्साहवर्धन और सराहना करती टिप्पणी हेतु ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ ।
प्रिय केवल भाई, आपकी सराहना सर आँखों पर, स्नेह बनाये रखें, सादर आभार ।
आदरणीय भ्राताश्री बेहद सुन्दर लघु कथा सच्चाई से रूबरू करवा दिया आपने, कथा की शुरुआत में लिखा ए लुभा रहा है. हार्दिक बधाई भाई जी
ऐसी ही दिखावे की दुनिया है. लोगों को समझना बड.आ कठिन है.सामयिक एवम सटीक बात लिखी आपने. धन्यवाद
वाह! रे इंसान..महज कुछ दिन ईमान रखकर, ताउम्र की बेईमानी के तुल्य समझता है..
सटीक लघुकथा पर हार्दिक बधाई, आदरणीय गणेश बागी जी
वाह रे मानव!!
भगवान के रोज है,उन दिनों इमानदारी पाल लेंगा तो बाकी दिनों में बेईमानी नगण्य हो जायेगी|
भगवान् को भी बना लेता है मानव !
बहुत बहुत बधाई कटुसत्य के लिए आदरणीय बागी जी!!
टिप्पणी हेतु आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी ।
बहुमूल्य टिप्पणी हेतु आभार आदरणीया वंदना तिवारी जी ।
आदरणीय शिज्जू जी, लघुकथा की आत्मा तक पहुँच कर सराहना करने हेतु बहुत बहुत आभार ।
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