For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब अन्धियारा संग संग है,

सब रंगों का एक रंग है।

एक लड़ाई है बाहर तो,  

ख़ुद के अन्दर एक जंग है।

शहरों की गलियों से जादा,

गली दिलों की और तंग है।

कुछ करने की चाहत लेकर,

आगे आया वो अपंग है।

गांव छोड़ जो बाहर निकला,

कटी जानिये वो पतंग है।

बाहर बाहर रौशन है सब,

अपना जीवन तो सुरंग है।

नये दौर मे ऐलानों के,

आम जनों मे फिर उमंग है।

     *********

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 383

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 17, 2014 at 12:37am

एक लड़ाई है बाहर तो,  

ख़ुद के अन्दर एक जंग है।

बहुत सुन्दर ... बधाई..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 14, 2013 at 8:59pm

आदरणीय सौरभ भाई , नमस्कार ,

                 आपकी सलाह का हज़ार बार स्वागत !!  मुझे मात्रा गिनना बिल्कुल नही आता , बिल्कुल शून्य हूँ ! मै गुनगुना के लिख देता हूँ ! आप लोगों के मार्ग दर्शन की बहुत ज़रूरत है ! अभी मै गज़ल की बातें  पढ़ना शुरू किया हूँ , कुछ समझ आ रहा है और कुछ कठिनाई भी हो रही है ! मुझे प्रौढ शिक्षा का विद्यार्थी समझिये , अगर मात्रा ठीक भी है तो धोखे से अनजाने मे, मै ग्यान शून्य हूँ !

मुझे लगातार , विस्तार से मार्ग दर्शन की आवश्यकता है , आप स्वीकार करें तो आपसे ही कठिनाई पूछ लिया करूंगा ! आपका हर सुझाव सर आंखो पर ! नौकरी से अवकाश प्राप्त करने वाला हूँ , गज़ल कहना सीख्नना मेरा अब मुख्य ध्येय है !! सुझाव के इंतिज़ार मे रहूंगा !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 14, 2013 at 3:50pm

आदरणीय गिरिराज भण्डारी साहब, फेलुन फेलुन के विन्यास पर आपने संयत बातें साझा की हैं.  आपसे अपेक्षा है कि आप अपनी ग़ज़ल के मिसरों के विन्यास अवश्य लिख दिया करें.

यों, ऐसे में मिसरे में गाफ़ की कुल गिनती फूट रखी जाती है. आपने आठ यानि सम संख्या में गाफ़ गिन लिये हैं. 

एक संयत और सुन्दर कोशिश के लिए बधाई.

निवेदन

======

यदि मेरी सलाह आपको आपके संप्रेषण पर अतिक्रमण लगे तो अवश्य कहियेगा.  मैं अपनी प्रतिक्रिया हटा लूँगा. यहाँ कोई मठाधीशी नहीं करता. जैसा कि सोच लेने वालों ने मान रखा है.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 13, 2013 at 3:12pm

शुक्रिया , विजय भाई , मात्राओं( बहर ) की  गलती मुझसे होती है , अगर ऐसा लगे तो अवश्य अवगत करायें , पुनः धन्यवाद !!

Comment by विजय मिश्र on August 13, 2013 at 12:56pm
"कुछ करने की चाहत लेकर,
आगे आया वो अपंग है। "

चिंतन और सोच उच्च स्तर का है ,सरल शब्दों का गहन समीकरण . बधाई गिरिराजजी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 12, 2013 at 10:38am
अन्नपूरणा जी शुक्रिया , मै नया सदस्य हूँ और ग़ज़ल विधा के ज्ञान मे शून्य हूँ , ग़लतिया ज़रूर बताये मै सुधारने का भरसक प्रयत्न करूंगा , सभी वरिष्ठ सदस्यों से भी मेरी यही प्रार्थना है !
Comment by annapurna bajpai on August 12, 2013 at 12:06am

शहरों की गलियों से जादा,

गली दिलों की और तंग है।............ye panktiyan prabhav chodti hain . hardik badhai apko adarniy .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service