जब अन्धियारा संग संग है,
सब रंगों का एक रंग है।
एक लड़ाई है बाहर तो,
ख़ुद के अन्दर एक जंग है।
शहरों की गलियों से जादा,
गली दिलों की और तंग है।
कुछ करने की चाहत लेकर,
आगे आया वो अपंग है।
गांव छोड़ जो बाहर निकला,
कटी जानिये वो पतंग है।
बाहर बाहर रौशन है सब,
अपना जीवन तो सुरंग है।
नये दौर मे ऐलानों के,
आम जनों मे फिर उमंग है।
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
एक लड़ाई है बाहर तो,
ख़ुद के अन्दर एक जंग है।
बहुत सुन्दर ... बधाई..
आदरणीय सौरभ भाई , नमस्कार ,
आपकी सलाह का हज़ार बार स्वागत !! मुझे मात्रा गिनना बिल्कुल नही आता , बिल्कुल शून्य हूँ ! मै गुनगुना के लिख देता हूँ ! आप लोगों के मार्ग दर्शन की बहुत ज़रूरत है ! अभी मै गज़ल की बातें पढ़ना शुरू किया हूँ , कुछ समझ आ रहा है और कुछ कठिनाई भी हो रही है ! मुझे प्रौढ शिक्षा का विद्यार्थी समझिये , अगर मात्रा ठीक भी है तो धोखे से अनजाने मे, मै ग्यान शून्य हूँ !
मुझे लगातार , विस्तार से मार्ग दर्शन की आवश्यकता है , आप स्वीकार करें तो आपसे ही कठिनाई पूछ लिया करूंगा ! आपका हर सुझाव सर आंखो पर ! नौकरी से अवकाश प्राप्त करने वाला हूँ , गज़ल कहना सीख्नना मेरा अब मुख्य ध्येय है !! सुझाव के इंतिज़ार मे रहूंगा !!
आदरणीय गिरिराज भण्डारी साहब, फेलुन फेलुन के विन्यास पर आपने संयत बातें साझा की हैं. आपसे अपेक्षा है कि आप अपनी ग़ज़ल के मिसरों के विन्यास अवश्य लिख दिया करें.
यों, ऐसे में मिसरे में गाफ़ की कुल गिनती फूट रखी जाती है. आपने आठ यानि सम संख्या में गाफ़ गिन लिये हैं.
एक संयत और सुन्दर कोशिश के लिए बधाई.
निवेदन
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यदि मेरी सलाह आपको आपके संप्रेषण पर अतिक्रमण लगे तो अवश्य कहियेगा. मैं अपनी प्रतिक्रिया हटा लूँगा. यहाँ कोई मठाधीशी नहीं करता. जैसा कि सोच लेने वालों ने मान रखा है.
शुक्रिया , विजय भाई , मात्राओं( बहर ) की गलती मुझसे होती है , अगर ऐसा लगे तो अवश्य अवगत करायें , पुनः धन्यवाद !!
शहरों की गलियों से जादा,
गली दिलों की और तंग है।............ye panktiyan prabhav chodti hain . hardik badhai apko adarniy .
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