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ग़ज़ल : थका तो हूँ मगर हारा नहीं हूँ

बह्र : मुफाईलुन मुफाईलुन फऊलुन

--------------------

न ऐसे देख बेचारा नहीं हूँ

थका तो हूँ मगर हारा नहीं हूँ

 

है मुझमें रौशनी, गर्मी नहीं पर

मैं इक जुगनू हूँ अंगारा नहीं हूँ

 

यकीनन संगदिल भी काट दूँगा

तो क्या जो बूँद हूँ धारा नहीं हूँ

 

सभी को साथ लेकर क्यूँ मिटूँगा?

मैं शबनम हूँ कोई तारा नहीं हूँ

 

हवा भरना तुम्हारा बेअसर है

मैं इक रोटी हूँ गुब्बारा नहीं हूँ

 

मेरी हर बात को अंतिम न मानो

मैं पूरा हूँ मगर सारा नहीं हूँ

 

कभी मैं रह न पाऊँगा महल में

मैं इक झरना हूँ फव्वारा नहीं हूँ

 

कभी मुझमें उतरकर देख लेना

समंदर हूँ मगर खारा नहीं हूँ

----------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by विजय मिश्र on August 19, 2013 at 4:36pm
बेहतरीन गजल , बधाई धर्मेन्द्रजी . लयात्मकता में मन की बात निकली है . खूब कहा .
Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on August 19, 2013 at 1:41pm

जितनी तारीफ़ करें, कम है ! लाजवाब गज़ल आदरणीय धर्मेन्द्र जी ! ढेरों दाद कबूलें...!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 19, 2013 at 8:32am

ग़ज़ल में ऊपर से नीचे तक उतरकर देखा ..वाकई समन्दर है ..और खारा भी नहीं ..किसी एक शेर को बिशेष रूप से इंगित करना दुष्कर होगा मुझ जैसे नौसिखिये के लिए...ऐसी चंद ग़ज़लें जो समय समय पर अवतरित होती रहती हैं नया चिंतन देती हैं ..शिल्प की जादूगरी तो आपकी ग़ज़लों में होती ही है ..ढेरो बधाई के साथ ..सादर 

Comment by वीनस केसरी on August 19, 2013 at 12:24am

हवा भरना तुम्हारा बेअसर है

मैं इक रोटी हूँ गुब्बारा नहीं हूँ

 

मेरी हर बात को अंतिम न मानो

मैं पूरा हूँ मगर सारा नहीं हूँ

 

कभी मैं रह न पाऊँगा महल में

मैं इक झरना हूँ फव्वारा नहीं हूँ

 

कभी मुझमें उतरकर देख लेना

समंदर हूँ मगर खारा नहीं हूँ



आख़री के चार शेर पर तो भाई जिंदाबाद जिंदाबाद ... जश्न होना चाहिए ऐसे ग़ज़लों के हो जाने पर

Comment by विवेक मिश्र on August 18, 2013 at 9:27pm

बेहतरीन-बेहतरीन-बेहतरीन.. मतले से लेकर आखिरी शे'र तक हरेक शे'र एकदम मंझा हुआ. वैसे तो किसी भी एक शे'र को 'हासिल-ए-ग़ज़ल शे'र' कहना मुश्किल है, पर मतला और इन दो मिसरों ने ख़ासा ध्यान खींचा. बधाई स्वीकारें भाई जी.
/मैं पूरा हूँ, मगर सारा नहीं हूँ/
/मैं इक जुगनू हूँ, अंगारा नहीं हूँ/

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 18, 2013 at 8:26pm

मेरी हर बात को अंतिम न मानो

मैं पूरा हूँ मगर सारा नहीं हूँ...........बहुत जानदार शेर

आदरणीय धर्मेन्द्र जी, तहे दिल से दाद कुबूल कीजिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 18, 2013 at 4:43pm

अहा !!!! वाह आदरणीय भाई जी वाह आनंद आ गया मन खुश कर दिया आपने ऐसी सुन्दर पेशकश से, सभी के सभी अशआर दिल को छू गए दिल से ढेरों दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 18, 2013 at 3:06pm

बहुत बहुत धन्यवाद Shijju S. जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 18, 2013 at 3:05pm

बहुत बहुत धन्यवाद राज़ नवादवी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 18, 2013 at 3:05pm

 तह-ए-दिल से आभारी हूँ giriraj bhandari जी

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