मौलिक / अप्रकाशित
गुड्डी-गुड़ी गुमान में, ऊँची भरे उड़ान |
पेंच लड़ाने लग पड़ी, दुष्फल से अन्जान |
दुष्फल से अन्जान, जान जोखिम में डाली |
आये झँझावात, काट दे माँझा-माली |
लग्गी लेकर दौड़, लगाने लगे उजड्डी |
सरेआम लें लूट, गिरी माँझा बिन गुड्डी ||
Comment
आभार आदरणीय गिरिराज जी / ब्रजेश जी / अरुण जी -
आभार आदरणीय-
सौरभ जी
उड़े पतंगा दे जला, चाहे खुद मर जाय |
हरदम गुड्डी को खला, जब तब रहा सताय |
जब तब रहा सताय, सुकोमल गुड्डी मरती |
फिर पब्लिक चिल्लाय, बड़ा-आन्दोलन करती |
पर कानूनी लोच, लगा अब तलक अडंगा |
पुन: लगा के खोंच, जला के उड़े पतंगा |
गुड्डी का इंगित सुगढ़, रविकर दें सन्देश
अजब-गजब यह उम्र है, अजब-गज़ब परिवेश
अजब-गजब परिवेश, हुलसती मन ही मन में
आफ़त से अनजान, ढील पा उड़े गगन में
सही कहा हे तात, शिष्टता हुई उजड्डी
शुभ-शुभ लेखन वाह, खूब है इंगित गुड्डी
सादर
बहुत ही सुन्दर आदरणीय! आपको नमन!
रविकर भाई , सुन्दर कुण्डलिया की रचना की , बधाई !!
आदरणीय रविकर सर वाह आपकी कुण्डलिया में प्रयुक्त शब्द बहुत कुछ सिखा जाते हैं हार्दिक बधाई इस सुन्दर कुण्डलिया छंद हेतु.
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