ग़ज़ल -
किसी ने यूँ छुआ सा ,
मुझे कुछ कुछ हुआ सा |
मैं हर शब् हारता हूँ ,
ये जीवन है जुआ सा |
कसावट का भरम था ,
नरम थी वो रुआ सा |
नज़र खामोश उसकी ,
असर उसका दुआ सा |
कहीं कुछ टीसता है ,
कि धंसता है सुआ सा |
मैं हल खींचूँ अकेले ,
ले काँधे पर जुआ सा |
मधुर सी चांदनी है ,
मिला महुआ चुआ सा |
ये माँ का याद आना ,
लगे मीठा पुआ सा |
-अभिनव अरुण
{पुरानी डायरी से १८०८२०१३}
* सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित - अरुण
Comment
अभिनव भाई , छोटी बहर मे , कम शब्दों मे बढ़िया गज़ल हुई !!!! बधाई !!!!
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