ग़ज़ल -
कहकहों के दायरे में दिल मेरा वीरान है ,
गाँव के बाहर बहुत खामोश एक सीवान है |
उंगलियाँ उठने लगेंगी जब मेरे अशआर पर ,
मान लूँगा मैं कि मेरे दर्द का दीवान है |
वो सुनहरे ख्वाब में है सत्य से कोसो परे ,
आदमी हालात से वाकिफ मगर अनजान है |
छू के उस नाज़ुक बदन को खुशबुओं ने ये कहा ,
ज़िन्दगी से दूर साँसों की कहाँ पहचान है |
बढ़ रहा है कद अँधेरे का शहर में देखिये ,
हाशिये पर गाँव का दुबका हुआ अरमान है |
हाट एक सजती है पगडण्डी के दोनों छोर पर ,
और इच्छाएं लिए घुटता हुआ इंसान है |
- अभिनव अरुण
{19082013}
*सर्वथा मौलिक और अप्रकाशित
Comment
बहुत आभार आ. अखिलेश जी अशार आपके पसंद आये लेखन सार्थक हुआ .
बढ़ रहा है कद अँधेरे का शहर में देखिये ,
हाशिये पर गाँव का दुबका हुआ अरमान है | ************************************** अरुण भाई- ये पंक्तियां इस गजल की जान हैं । बधाई !!
बढ़ रहा है कद अँधेरे का शहर में देखिये ,
हाशिये पर गाँव का दुबका हुआ अरमान है | आदरणीय अभिव अरूण जी अन्तर्मन को छूती हुई बेहतरीन गज़ल . हार्दिक बधाई
हाट एक सजती है पगडण्डी के दोनों छोर पर ,
और इच्छाएं लिए घुटता हुआ इंसान है |
ये शेर मेरा भी पसंदीदा है आ. केवल जी ..अनुमोदन केलिए हार्दिक रूप से धन्यवाद आपका !!
आ0 अभिनव अरून भाई जी! सादर प्रणाम! लाजवाब और शानदार गजल। बहुत सुन्दर... //छू के उस नाज़ुक बदन को खुशबुओं ने ये कहा, ज़िन्दगी से दूर साँसों की कहाँ पहचान है// बेहतरीन गजल प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
आ.श्री पियूष जी , ग़ज़ल को सराहने का शुक्रिया . आप ने जो विन्दु उठाये हैं उनपे पुनर्विचार कर सूचित करता हूँ ..सादर !!
हाँ आम ही हूँ... पर आज इस आम का सीजन नहीं रहा हर तरफ मुलम्मों का बोलबाला है उसे चीरने कोशिश रहती हैं मेरी रचनाएँ.. आपने मान दिया.. ह्रदय से आभार आ . गीतिका जी !!
बहुत बहुत आभार श्री अरविन्द जी !आपने शेर सराहा लेखन समादृत हुआ !!
हाट एक सजती है पगडण्डी के दोनों छोर पर ,
और इच्छाएं लिए घुटता हुआ इंसान है |..........शानदार शेर है ....कुछ कह जाता है.... दोहराने का मान करता है| बधाई|
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