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शज़र

मेरे सीने में कोई प्यासा शज़र, अब तक है,
उसके अंदाज़ में मौसम का असर, अब तक है|

उसको मंज़िल मिली, वो चैन से सोने को गया,
मेरे हिस्से मे कोई तन्हा सफ़र ,अब तक है|

वो नही, नींद नही, फिर भी मैं खुश हूँ, गोया,
उसकी मासूम दुआओं का असर अब तक है|

उसकी ख्वाहिश कहीं मुट्ठी में बंद रेत ना हो,
मेरे अहसास में पैबस्त ये डर अब तक है|

मुझ से पूछा है कई बार, ढलते सूरज ने ,
यूँ तो 'शेखर' है तेरा नाम, मगर कब तक है|

मौलिक एवं अप्रकाशित

अरविंद भटनागर ' शेखर'

Views: 453

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Comment by mrs manjari pandey on August 25, 2013 at 4:19pm

      नाज़ुक गज़ल के लिये ढेरों बधाईयां . खूबसूरती से कह दिया 

     

वो नही, नींद नही, फिर भी मैं खुश हूँ, गोया,
उसकी मासूम दुआओं का असर अब तक है|

Comment by Abhinav Arun on August 22, 2013 at 3:04pm

वाह खूबसूरत और लाजवाब ग़ज़ल -

वो नही, नींद नही, फिर भी मैं खुश हूँ, गोया,
उसकी मासूम दुआओं का असर अब तक है|

हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय !!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 19, 2013 at 9:43pm

सुंदर गजल,

आदरणीय अरविन्द जी बधाई स्वीकारें

Comment by विजय मिश्र on August 19, 2013 at 5:32pm
बेहद प्यारी और खूबसूरत गजल ,मिजाज उम्दा अन्दाज भी उम्दा ,काश दो-चार बंद और बढे होते तो हमारा दिल भी भरता . ढेर सारी शुभकामनाएँ शेखरजी
Comment by राज़ नवादवी on August 19, 2013 at 4:35pm

बहुत खूब जनाब अरविन्द जी. हर शेर उम्दा और मुलायम एहसासों के पैकर में ढला. बधाई हो! 

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