शज़र
मेरे सीने में कोई प्यासा शज़र, अब तक है,
उसके अंदाज़ में मौसम का असर, अब तक है|
उसको मंज़िल मिली, वो चैन से सोने को गया,
मेरे हिस्से मे कोई तन्हा सफ़र ,अब तक है|
वो नही, नींद नही, फिर भी मैं खुश हूँ, गोया,
उसकी मासूम दुआओं का असर अब तक है|
उसकी ख्वाहिश कहीं मुट्ठी में बंद रेत ना हो,
मेरे अहसास में पैबस्त ये डर अब तक है|
मुझ से पूछा है कई बार, ढलते सूरज ने ,
यूँ तो 'शेखर' है तेरा नाम, मगर कब तक है|
मौलिक एवं अप्रकाशित
अरविंद भटनागर ' शेखर'
Comment
नाज़ुक गज़ल के लिये ढेरों बधाईयां . खूबसूरती से कह दिया
वो नही, नींद नही, फिर भी मैं खुश हूँ, गोया,
उसकी मासूम दुआओं का असर अब तक है|
वाह खूबसूरत और लाजवाब ग़ज़ल -
वो नही, नींद नही, फिर भी मैं खुश हूँ, गोया,
उसकी मासूम दुआओं का असर अब तक है|
हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय !!
सुंदर गजल,
आदरणीय अरविन्द जी बधाई स्वीकारें
बहुत खूब जनाब अरविन्द जी. हर शेर उम्दा और मुलायम एहसासों के पैकर में ढला. बधाई हो!
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