हैं दरख़्त जाने कितने , पर कहीं नही है साया ,
मेरी ज़िंदगी में यारों , ये क्या मुकाम आया |
बस्ती वो मिट गई ओर कुछ भी ना कर सका मै ,
इस वक़्त के दरिया में ,इक ऐसा तूफान आया |
फुटपाथ पर सड़क के , कड़ी ठंड मे ठिठुर के ,
सोया जो रात में तो , रोटी का ख्वाब आया |
वही हर्फो का तरन्नुम , वही खुश्बू भीनी भीनी,
मै तो लापता हूँ कब से, ये खत कहाँ से आया |
ये ग़ज़ल नहीं है यारों, ये तलाश है उसी की,
जिसे आज तक है 'शेखर ', बस ख्वाब मे ही पाया |
मौलिक एवं अप्रकाशित
अरविंद भटनागर ' शेखर'
Comment
आदरणीय अरविंद जी लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर सुन्दर बन पड़े हैं खास कर ये शेर अधिक पसंद आया, ग़ज़ल पर मेरी ओर बधाई स्वीकारें.
फुटपाथ पर सड़क के , कड़ी ठंड मे ठिठुर के ,
सोया जो रात में तो , रोटी का ख्वाब आया |
आ0 अरविन्द भाई जी, सादर प्रणाम! वाह! वाह! बेहद सुन्दर गजल प्रस्तुति के लिए तहेदिल से बधाई स्वीकारें। सादर,
हैं दरख़्त जाने कितने , पर कहीं नही है साया ,
मेरी ज़िंदगी में यारों , ये क्या मुकाम आया | क्या बात है अरविन्द जी बहुत् मन्मोहक भीी भीनी गज़ल . बधाई .
आप सभी को हौसला अफज़ाई का शुक्रिया | अभी OBO पर नया हूँ , इसके तौर तरीके सीखने की कोशिश कर रहा हूँ | आशा है जल्दी ही आप लोगो से OBO के द्वारा विचारों का आदान प्रदान करने लगूंगा | आप सभी को मेरी हार्दिक शुभ कामनाएँ|
बेहतरीन ,,
वही हर्फो का तरन्नुम , वही खुश्बू भीनी भीनी,
मै तो लापता हूँ कब से, ये खत कहाँ से आया |,,आपको जिसकी तलाश है उसने आपको तलाश लिया ..मेरी तरफ से हार्दिक बधाई
बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है। आपको हार्दिक बधाई! कृपया बहर का भी जिक्र किया करें जिससे पाठक को शिल्प समझने में आसानी होती है।
सुन्दर , मार्मिक गज़ल , अरविन्द भाई , बधाई !!
बस्ती वो मिट गई ओर कुछ भी ना कर सका मै ,
इस वक़्त के दरिया में ,इक ऐसा तूफान आया |----------------- वाह क्या बात है !!
बस्ती वो मिट गई ओर कुछ भी ना कर सका मै ,
इस वक़्त के दरिया में ,इक ऐसा तूफान आया |
सुंदर मार्मिक पंक्ति शेखरजी आपके भाव एवं कलम को नमन
वही हर्फो का तरन्नुम , वही खुश्बू भीनी भीनी,
मै तो लापता हूँ कब से, ये खत कहाँ से आया |
क्या बात है शेखर जी आप तो छा गये, आपको बधाई!
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