For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हैं दरख़्त जाने कितने , पर कहीं नही है साया , 

मेरी ज़िंदगी में यारों , ये क्या मुकाम आया |

बस्ती वो मिट गई ओर कुछ भी ना कर सका मै ,

इस वक़्त के दरिया में ,इक  ऐसा तूफान आया |

फुटपाथ पर सड़क के , कड़ी ठंड मे ठिठुर के ,

सोया जो रात में तो , रोटी का ख्वाब आया |

वही हर्फो का तरन्नुम , वही खुश्बू भीनी भीनी,

मै तो लापता हूँ कब सेये खत कहाँ से आया |

ये ग़ज़ल नहीं है यारों,   ये तलाश है उसी की,

जिसे आज तक है 'शेखर ', बस ख्वाब मे ही पाया |

मौलिक एवं अप्रकाशित 

अरविंद भटनागर ' शेखर'

Views: 552

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 26, 2013 at 4:02pm

आदरणीय अरविंद जी लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर सुन्दर बन पड़े हैं खास कर ये शेर अधिक पसंद आया, ग़ज़ल पर मेरी ओर बधाई स्वीकारें.

फुटपाथ पर सड़क के , कड़ी ठंड मे ठिठुर के ,

सोया जो रात में तो , रोटी का ख्वाब आया |

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 25, 2013 at 8:20pm

आ0 अरविन्द भाई जी,  सादर प्रणाम!   वाह! वाह!  बेहद सुन्दर गजल प्रस्तुति के लिए तहेदिल से बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by mrs manjari pandey on August 25, 2013 at 2:05pm

हैं दरख़्त जाने कितने , पर कहीं नही है साया , 

मेरी ज़िंदगी में यारों , ये क्या मुकाम आया |        क्या बात है अरविन्द जी बहुत् मन्मोहक भीी भीनी गज़ल  . बधाई .

Comment by ARVIND BHATNAGAR on August 25, 2013 at 1:49pm

आप सभी को हौसला अफज़ाई का शुक्रिया | अभी OBO पर नया हूँ , इसके तौर तरीके सीखने की कोशिश कर रहा हूँ | आशा है जल्दी ही आप लोगो से OBO के द्वारा विचारों का आदान प्रदान करने लगूंगा | आप सभी को मेरी हार्दिक शुभ कामनाएँ|

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 25, 2013 at 1:31pm

बेहतरीन ,,

वही हर्फो का तरन्नुम , वही खुश्बू भीनी भीनी,

मै तो लापता हूँ कब सेये खत कहाँ से आया |,,आपको जिसकी तलाश है उसने आपको तलाश लिया ..मेरी तरफ से हार्दिक बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on August 25, 2013 at 10:01am

बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है। आपको हार्दिक बधाई! कृपया बहर का भी जिक्र किया करें जिससे पाठक को शिल्प समझने में आसानी होती है।

Comment by annapurna bajpai on August 24, 2013 at 11:01pm
आदरणीय अरविंद जी बहुत बढ़िया गजल के लिए बहुत बधाई ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2013 at 10:49pm

सुन्दर , मार्मिक गज़ल , अरविन्द भाई , बधाई !!

बस्ती वो मिट गई ओर कुछ भी ना कर सका मै ,

इस वक़्त के दरिया में ,इक  ऐसा तूफान आया |----------------- वाह क्या बात है !!

Comment by रमेश कुमार चौहान on August 24, 2013 at 10:07pm

बस्ती वो मिट गई ओर कुछ भी ना कर सका मै ,

इस वक़्त के दरिया में ,इक  ऐसा तूफान आया |

सुंदर मार्मिक  पंक्ति शेखरजी आपके भाव एवं कलम को नमन

Comment by D P Mathur on August 24, 2013 at 8:03pm

वही हर्फो का तरन्नुम , वही खुश्बू भीनी भीनी,

मै तो लापता हूँ कब सेये खत कहाँ से आया |

क्या बात है शेखर जी आप तो छा गये, आपको बधाई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service