वो अपनेपन का सोता खोल दिल की हर गिरह निकले ।
कगारी फाँद ओंठों की सुरीला गीत बह निकले ।
लरजकर चूम ले माथा, हुमक कर बाँह में भर ले
वो बिछड़ी रात भर की धूप बौरी जब सुबह निकले ।
फकत दो बूँद ने भीतर तलक सारा भिगो डाला
हमारे दिल भी ये कच्चे मकानों की तरह निकले ।
इन्हें पोंछो तो पहले कैफियत पीछे तलब करना
हर आँसू बेशकीमत है वो चाहे जिस वजह निकले
इस अपनी आदमी की देह से इतनी कमाई कर
कि तेरे बाद भी तेरे लिये दिल में जगह निकले ।।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
सुलभ भाई बधाई , अच्छी गज़ल के किये , !!
फकत दो बूँद ने भीतर तलक सारा भिगो डाला
हमारे दिल भी ये कच्चे मकानों की तरह निकले ।
इन्हें पोंछो तो पहले कैफियत पीछे तलब करना
हर आँसू बेशकीमत है वो चाहे जिस वजह निकले ------------ वाह वाह !!
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