बहुत याद क्यों आज तू आ रही है ?
किसी ढीठ बच्ची सी नादानियों में
क्यों सुधियों के पन्नों को छितरा रही है ।
सुबह एक छोटी सी प्यारी सी गुड़िया
मेरे गाल पर फूल बिखरा गई थी ।
फुदकती हुई एक नन्हीं गिलहरी
थोड़ी देर गोदी में सुस्ता गई थी ।
अभी तक छुअन रेशमी-रेशमी सी
मेरे नर्म अहसास सहला रही है ।
मेरे सूने कमरे में कुछ देर खेलें
बुलाया था चंचल हवाओं को मैंने
मचलती चली आयें किलकारियाँ सब
कि खोला था मन की गुफाओं को मैंने
वो किलकारियाँ वो हवायें नहीं अब
मगर उनकी खुश्बू तो लहरा रही है ।
ये तनहाइयों और वो बातें, वो यादें
लगी मन में सावन की अब तक झड़ी है
जहाँ से बिछड़ कर अलग हो गये हम
वहीं तू दिया ले के अब तक खड़ी है -
सदा दे रही है, दुआ कर रही है
मगर पास आने से कतरा रही है।
..................... सुलभ
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुलभजी, क्षमा कि इस रचना पर विलम्ब से आ पारहा हूँ.
सामान्य और वहीवहीपन सेभरे बिम्बों को आपने बेहतर आयाम और भाव दिये हैं.
दूसरा बंद हृदय को हिलोर गया.
सादर बधाइयाँ.
मेरे सूने कमरे में कुछ देर खेलें
बुलाया था चंचल हवाओं को मैंने
मचलती चली आयें किलकारियाँ सब
कि खोला था मन की गुफाओं को मैंने
प्रिय सुलभ जी ...खूबसूरत भाव ..मनमोहक शब्द बन्ध ....आनंद आ गया
..भाई बहन का प्रेम अमर रहे ...रक्षा बंधन की शुभ कामनाएं
भ्रमर ५
//बहुत याद क्यों आज तू आ रही है ?//
इस एक पंक्ति ने ही आज बहुत कुछ कह दिया है।
अच्छी रचना के लिए बधाई।
इस रचना से मुझको अपनी एक कविता याद आ गई...
"तुम जब भी आती हो, इतना दर्द बन कर क्यूँ आती हो?"
सादर,
विजय निकोर
"सुबह एक छोटी सी प्यारी सी गुड़िया
मेरे गाल पर फूल बिखरा गई थी ।
फुदकती हुई एक नन्हीं गिलहरी
थोड़ी देर गोदी में सुस्ता गई थी ।"............बहुत सुंदर भाव, बड़ी ही खुबसूरती से पिरोय हुए
बेहद खुबसूरत रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय सुलभ जी
बहुत-बहुत धन्यवाद ! अमन कुमार जी !
बहुत-बहुत धन्यवाद ! श्याम नारायन वर्मा जी !
बहुत-बहुत धन्यवाद ! राम शिरोमणि पाठक जी !
बहुत-बहुत धन्यवाद ! गीतिका वेदिका जी !
बहुत-बहुत धन्यवाद ! गिरिराज भण्डारी जी !
लगी मन में सावन की अब तक झड़ी है|
किसी गाने की याद दिला रही है ......
पूरी रचना दिल तक गयी है ...
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