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वो अपनेपन का सोता खोल दिल की हर गिरह निकले ।
कगारी फाँद ओंठों की सुरीला गीत बह निकले ।

लरजकर चूम ले माथा, हुमक कर बाँह में भर ले
वो बिछड़ी रात भर की धूप बौरी जब सुबह निकले ।

फकत दो बूँद ने भीतर तलक सारा भिगो डाला
हमारे दिल भी ये कच्चे मकानों की तरह निकले ।

इन्हें पोंछो तो पहले कैफियत पीछे तलब करना
हर आँसू बेशकीमत है वो चाहे जिस वजह निकले

इस अपनी आदमी की देह से इतनी कमाई कर
कि तेरे बाद भी तेरे लिये दिल में जगह निकले ।।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 3, 2014 at 3:33pm

//लरजकर चूम ले माथा, हुमक कर बाँह में भर ले
वो बिछड़ी रात भर की धूप बौरी जब सुबह निकले ।//

वाह वाह !! जवाब नहीं इस ख्याल का आ० सुलभ अग्निहोत्री जी। बहुत खूबसूरती से शब्द बक्शे है इस ख्याल को, दिल से बधाई पेश है।

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 26, 2013 at 8:32pm

लरजकर चूम ले माथा, हुमक कर बाँह में भर ले
वो बिछड़ी रात भर की धूप बौरी जब सुबह निकले ।     क्या कहने वाह वाह वाह  !!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 26, 2013 at 8:21pm

एक मतला और चार शेर.. और सबके सब मिजाज़ में ! अपने अंदाज़ में !

आदरणीय सुलभभाईजी, आपकी ग़ज़ल में दम तो है ही दिशा भी है. प्रस्तुति में जिस लिहाज से आपने माटी के गंध को इन्फ्यूज किया है, वह विभोर कर गया.  आपसे मंच को और आगे साहित्य को बहुत अपेक्षाएँ हैं, आदरणीय.

मैं आपकी अन्य प्रस्तुतियों की प्रतीक्षा कर रहा हूँ.

सादर

Comment by Sulabh Agnihotri on August 20, 2013 at 5:15pm

बहुत-बहुत धन्यवाद ! राम शिरोमणि पाठक जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 20, 2013 at 5:14pm

dhanyavad Ketan Parmar Ji

Comment by ram shiromani pathak on August 20, 2013 at 2:10pm

फकत दो बूँद ने भीतर तलक सारा भिगो डाला
हमारे दिल भी ये कच्चे मकानों की तरह निकले ।वाह वाह

इस अपनी आदमी की देह से इतनी कमाई कर
कि तेरे बाद भी तेरे लिये दिल में जगह निकले ।।जोरदार  

आदरणीया बहुत ही  सुन्दर ग़ज़ल //हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Ketan Parmar on August 20, 2013 at 12:25pm

bahut khoob

Comment by Sulabh Agnihotri on August 20, 2013 at 9:28am

नीरज मिश्रा जी ! मन-वाणी दोनों अभिभूत हैं आपकी इस स्नेहिल-संगीतमय प्रतिक्रिया से। समझ नहीं आ रहा किन शब्दों में आभार व्यक्त करूँ ? कृतश्र हूँ ! बस, ऐसा ही स्नेह बनाये रखिये।

Comment by Sulabh Agnihotri on August 20, 2013 at 9:26am

बहुत-बहुत धन्यवाद ! विजय निकोर जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 20, 2013 at 9:25am

बहुत-बहुत धन्यवाद ! गीतिका वेदिका जी !

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