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" अम्मा ने कहा था"( लघु कथा )

उषा आज फिर देर से आई । मै कुछ पूछने को लपकी ही थी कि उसका चेहरा देख रुक गई, वह सिर पर पल्लू रखे चेहरे को छुपाने का प्रयास कर रही थी । वह अंदर आई और चुपचाप बर्तन उठाये और धोने बैठ गई । उसकी एक  आँख पूरी काली थी चेहरे पर और गर्दन पर कई निशान थे । कुछ न पूछना ही मुझे ठीक लगा । काम निपटा कर वह अंदर आई । मुझसे रहा न गया मैंने पूंछ ही लिया – “उषा क्या बात है आज फिर तुम्हारे पति ने तुम्हें .......” बात पूरी भी न हो पाई कि वह बीच मे ही काट कर बोली – “ नहीं भाभी ये तो देवता का परसाद है , अम्मा ने कहा था कि पति की हर बात, हर काम उसका परसाद समझ सिर माथे लगाना , वो  ही  तुम्हारा देवता है । और वो कड़वी सी हंसी हंस कर चल दी ।   

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Shubhranshu Pandey on August 25, 2013 at 10:27pm

आ. अन्नपूर्णा जी, कथा में उषा के व्यक्तव्य में जो तंज होना था वो पूरी तरह से उभर कर नहीं आ पाया. उसकी कडवी हँसी उसकी लघुता को इंगित करती है नकि माँ के वाक्य को परिभाषित किया है.

सादर.

 

Comment by mrs manjari pandey on August 25, 2013 at 2:34pm

      आदरणीया अन्नपूर्णा जी  सुन्देर लघुकथा    कम से कम आज की अम्माएं जाग जाएं . बेटी अम्मा की सीख का पालन कर रही है . ये अच्छे सन्सकार का परिचायक है .  बधाई

Comment by annapurna bajpai on August 24, 2013 at 10:52pm

आदरणीय माथुर जी आपकी बात से मै सहमत हूँ , जब नारी ही नारी का सम्मान करना सीख लेगी तभी बदलाव हो सकता है ।

Comment by D P Mathur on August 24, 2013 at 8:00pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी , समाज में पूर्व समय से चले आ रही सीख क्या आज के जमाने में प्रासंगिक रह गई है शायद पहले भी प्रासंगिक नही थी और आज तो बिल्कुल भी नही , ना जाने सम्पूर्ण परिवर्तन में कितना समय और लगेगा । शायद जब नारी ही नारी की सहायता करना प्रारम्भ कर देगी तो ही परिवर्तन सम्भव है । 

Comment by annapurna bajpai on August 24, 2013 at 5:22pm

आदरणीया मीना जी आपने सही कहा ।

Comment by Meena Pathak on August 24, 2013 at 5:17pm

ओह!!..... कितनी भोली है उषा, वो तो इंसान भी नही है जिसे वो देवता समझ रही है | 

Comment by annapurna bajpai on August 24, 2013 at 5:16pm

आदरणीय विजय मिश्र जी आपकी संवेदनाओं का मै पूरा आदर करती हूँ । सादर

Comment by annapurna bajpai on August 24, 2013 at 5:10pm

आदरणीय बृजेश जी बिलकुल सही कहा आपने , आज भी जब ये स्थितियाँ दिखती है तो कष्ट होता है ।  

Comment by annapurna bajpai on August 24, 2013 at 5:07pm

आदरणीय भण्डारी जी आप जो भी समझ लें परंतु आपका हार्दिक आभार ।

Comment by annapurna bajpai on August 24, 2013 at 5:01pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी मै आपकी और आदरणीय प्रभाकर जी की बात को पूर्ण रूप से सहमति देती हूँ लेकिन कहीं कहीं आज भी ऐसे लोग वही मानसिकता जिंदा है । ये भी सही है कि नारियों की सोच बदली है और वे काफी आगे आयीं है । किन्तु  इनका प्रतिशत अभी भी कम ही है । कुछ महिलाए अपनी पुरानी सोच के साथ अभी भी मिल ही जाती है । खास कर गाँव के पिछड़े तबके मे ।   

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