For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहू बनाम बेटी ( लघु कथा )

बहू बनाम बेटी

 

राधा जी घर मे अकेली थी , बेटा बहू के साथ उसकी बीमार माँ को देखने चला गया था । उसने कुछ पूछा भी नहीं बस आकार बोला – माँ हम लोग जरा कृतिका की माँ को देखने जा रहे है शाम तक आ जाएँगे । आपका खाना कृतिका ने टेबल पर लगा दिया है टाइम पर खा लेना , तुम्हारी दवाएं भी वही रखी है खा लेना भूलना मत ,और दरवाजा अच्छे से बंद कर लेना ।” कहता हुआ वो कृतिका के साथ बाहर निकल गया । पर बहू ने एक शब्द भी न कहा । “क्या वो कहती तो क्या मै मना कर देती । बहुयेँ कभी बेटी नहीं बन सकती आखिर बेटी तो बेटी ही होती है । “ वे सोचती हुई गेट तक आई और अच्छी तरह गेट बंद कर दिया । बाहरी कमरे मे टी वी ऑन कर बैठ गई। कुछ ही देर बाद डोर बेल घनघना उठी । उठ कर दरवाजा खोला देखा उनकी अपनी बेटी दामाद के साथ खड़ी है । खुशी से उनका चेहरा खिल उठा । बेटी को गले लगाते हुए पूछा- “तेरी सास ने मना नहीं किया ”, “वह बोली उनकी सुनता कौन है उनके लिए तो उनका बेटा है , वही उनको संभाल लेते है मै तो बोलती भी नहीं । और आज भी ये ही उन्हे बोल कर आए हैं मैंने न उनसे कुछ पूछा न कहा । बस ड्यूटी पूरी कर देती हूँ ताकि बेटे से शिकायत का मौका न मिले । बाप रे ! ससुराल का चैपटर मेरे बस का नहीं । ” मुसकुराते हुए उन्होने अपनी  बेटी की इस करतूत को कितनी  आसानी से भुला दिया।    

 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

 

Views: 1413

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by annapurna bajpai on August 29, 2013 at 12:30pm

आदरणीय जितेंद्र जी आप सही कह रहे है यदि बेटियां और बहुए सब ऐसा सोकह पाये  तभी कोई बात बने ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 28, 2013 at 10:52am

आज का दौर ही ऐसा हो चुका है, क्या बेटी और बहु को कभी सास नही बनना ? 

बहुत ही सटीक विषय पर, एक तुलनात्मक चित्रण बतलाती लघुकथा पर, हार्दिक बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा जी

Comment by annapurna bajpai on August 27, 2013 at 10:13pm

आ० प्राची जी मै आपकी बात पूरी तरह सहमत हूँ हम सभी इससे अछूते रहें । 

Comment by annapurna bajpai on August 27, 2013 at 10:12pm

आ० विजय मिश्रा जी आपका कथन एकदम सत्य है , आज की संस्कार प्रणाली मे ही दोष आ गया है । लोग आजाद रहना ज्यादा पसंद करते है । उम्र की आखिरी दहलीज पर खड़े माता पिता ही बोझ लगते है । 

Comment by annapurna bajpai on August 27, 2013 at 10:08pm

आ० राजेश कुमारी जी आपका हार्दिक आभार । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 27, 2013 at 9:37pm

संवेदनहीन रिश्तों के खोखलेपन को बेनकाब करती और बेटी बहू में भेद करती मानसिकता को प्रस्तुत करती एक सामाजिक अभिव्यक्ति.

हम आप इससे अछूते रहें :)))))))))))) यही शुभकामनाएँ 

Comment by विजय मिश्र on August 27, 2013 at 5:21pm
संभवतः आजकी जो संस्कार निर्मित्ति की प्रक्रिया है उसमें ही दोष आ गया है ,शीलता और शिष्टता के ह्रास का गणित तीव्रता से शून्य स्पर्श करना चाहता है . लोग उन्मुक्त और स्वच्छंद विचरण पसंद हैं अनुशासन को खूंटी पर टाँगना इन्हें भाता है . भूल ये है कि घर का पाठशाला समुचित पाठ देने में अक्षम होता जा रहा है .क्या करियेगा ?

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 27, 2013 at 3:23pm

कहानी घर- घर की !!कमी कहाँ है हमारे दिए संस्कारों में या पश्चिमी सभ्यता की नक़ल खोरी में ,या स्वावलंबन के मद में इस चैप्टर को सच में समझना नामुमकिन है ,बहुत बढ़िया मानसिक द्वन्द  को जगाती लघु कथा हेतु आपको बधाई अन्नपूर्णा जी 

Comment by annapurna bajpai on August 27, 2013 at 10:24am

आदरणया वंदना जी आपका कथन सत्य है ।

Comment by annapurna bajpai on August 27, 2013 at 10:23am

आदरणीय श्याम जी यदि सबक ले ले तो समस्या ही नहीं होगी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service