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मेरे मन मे वह बसी है किस तरह ,

फूलों में सुगंध समाई हो जिस तरह ।

अपने से अलग उसे करूं किस तरह,

समाई है समुद्र में नदी जिस तरह ।

उसके बिना अपना अस्तित्व है किस तरह,

नीर बीन मीन रहता है जिस तरह ।

उसकी मन ओ जाने मेरी है किस तरह,

देह का रोम रोम कहे राम जिस तरह ।

अलग करना भी चाहू किस तरह,

वह तो है प्राण तन में जिस तरह ।

मौलिक अप्रकाशित - रमेशकुमार चैहान

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Comment by अरुन 'अनन्त' on August 26, 2013 at 2:21pm

आदरणीय सुन्दर प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by रमेश कुमार चौहान on August 25, 2013 at 8:42pm

केवल प्रसादजी, डां.मिश्राजी आपके उत्साह वर्धन के लिये आभार

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 25, 2013 at 8:11pm

आ0 रमेश भाई जी,  सादर प्रणाम!    बेहदसुन्दर भाव, प्यारी रचना। टंकण त्रुटि को देख लें।  सुन्दर प्रस्तुति के लिए मेरी बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 25, 2013 at 1:20pm

इस सुंदर रचना पर मेरी बधाई स्वीकारें ..सादर

Comment by रमेश कुमार चौहान on August 25, 2013 at 10:33am
नीरजजी इस उत्साहवर्धन के लिये सादर नमन । त्रुटि निरूपण के लिये शुक्रिया
Comment by बृजेश नीरज on August 25, 2013 at 10:06am

वाह! बहुत ही सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
छठी पंक्ति में टाइपिंग की त्रुटि है उसे देख लें।
सादर!

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