मेरे मन मे वह बसी है किस तरह ,
फूलों में सुगंध समाई हो जिस तरह ।
अपने से अलग उसे करूं किस तरह,
समाई है समुद्र में नदी जिस तरह ।
उसके बिना अपना अस्तित्व है किस तरह,
नीर बीन मीन रहता है जिस तरह ।
उसकी मन ओ जाने मेरी है किस तरह,
देह का रोम रोम कहे राम जिस तरह ।
अलग करना भी चाहू किस तरह,
वह तो है प्राण तन में जिस तरह ।
मौलिक अप्रकाशित - रमेशकुमार चैहान
Comment
आदरणीय सुन्दर प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें
केवल प्रसादजी, डां.मिश्राजी आपके उत्साह वर्धन के लिये आभार
आ0 रमेश भाई जी, सादर प्रणाम! बेहदसुन्दर भाव, प्यारी रचना। टंकण त्रुटि को देख लें। सुन्दर प्रस्तुति के लिए मेरी बधाई स्वीकारें। सादर,
इस सुंदर रचना पर मेरी बधाई स्वीकारें ..सादर
वाह! बहुत ही सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
छठी पंक्ति में टाइपिंग की त्रुटि है उसे देख लें।
सादर!
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