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बढ़े चलो - बढ़े चलो

बढ़े चलो - बढ़े चलो
स्वप्न सच किये चलो
जो भी आये राह में
लिये चलो - लिये चलो...


अड़्चनों - रुकावटों
चुनौतियों का सामना
दृढ़ प्रतिज्ञ बनके तुम
किये चलो - किये चलो...


अनुभवों से सीख लो
कमियों को सुधार लो
सबको ऐसी प्रेरणा
दिये चलो - दिये चलो...


आकलन से कम मिले
तो भी मुस्कुराओ और
बाकी पाने के लिये
लगे रहो - लगे रहो...


हार हो कि जीत हो
कि धूप हो कि छांव हो
तुम सदैव एक से
बने रहो - बने रहो...


(मौलिक एवं अप्रकाशित)


- विशाल चर्चित

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 3, 2013 at 11:29pm

हार हो कि जीत हो
कि धूप हो कि छांव हो
तुम सदैव एक से
बने रहो - बने रहो...

प्रिय विशाल जी बहुत सुन्दर आह्वान .....प्यारी रचना

भ्रमर ५

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 1, 2013 at 1:48pm

आपके स्नेहिल मार्गदर्शन को नमन सौरभ सर जी.......हां सही कहा आपने सर कि काफी दिनों बाद मंच पर आना हुआ....वजह काम काज की अति व्यस्तता रही.....!!!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 1, 2013 at 1:45pm

हार्दिक धन्यवाद डॉ. प्राची जी !!!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 1, 2013 at 1:44pm

बहुत - बहुत शुक्रिया प्रियंका जी !!!!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 1, 2013 at 1:44pm

केवल भाई आभारी हूं आपका !!!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 1, 2013 at 1:43pm

दिल से शुक्रगुजार हूं आपका शुभ्रा शर्मा जी !!!!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 1, 2013 at 1:41pm

श्याम भाई जी धन्यवाद !!!!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 1, 2013 at 1:37pm

बधाई हेतु आभार विजय भाई !!!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 1, 2013 at 1:36pm

बहुत - बहुत शुक्रिया अरुन भाई....हां आपने सही कहा...पिछले कुछ महीने काफी उलझे हुए थे.....!!!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 1, 2013 at 1:34pm

हृदय से आभारी हूं आपका गिरिराज भंडारी सर जी !!!!

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