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बन्दगी अस्तित्व की

जो मै हूँ वही है तू , नही गर मै नही है तू ।

नही कुछ तू तू सबकुछ है , तू अंबर है ज़मी है तू ।

हवा भी तू घटा भी तू , तू ही बारिश की रिमझिम है ।

तू ही खिलता है फूलों में , सितारों की तू टिम टिम है ।

जो ना जानू कहीं ना तू , जो जानू तो यही है तू ।

परिंदों के मधुर स्वर में , तू ही नदियों की कल कल में ।

वक्त गुज़रे न गुज़रे तू , तेरा तो वास पल पल में ।

ये जीवन तुझसे पूरा है , तो इसकी हर कमी है तू ।

छुपाकर खुद को परदे में, तुझे हमने छुपा समझा ।

खता ये हो गयी हमसे , जो कुछ तेरे सिवा समझा ।

जो परदे में नही रहता , वही परदा नशीं है तू ।

मौलिक व अप्रकाशित

       नीरज

Views: 425

Comment

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Comment by विजय मिश्र on August 28, 2013 at 12:03pm
कृपया "आपकी " को 'आपका ' पढ़ें . कभी-कभी RE-EDIT की असुबिधा खलती है.
Comment by विजय मिश्र on August 28, 2013 at 11:59am
नीरजजी , आज श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के शुभदिन में आपकी यह ईश्वर के अस्तित्व का चित्ताकर्षक वर्णन मन को भा गया .रमणीक प्रस्तुति .हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ ,ग्रहण करें .
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 28, 2013 at 11:17am

सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई नीरज भाई

Comment by annapurna bajpai on August 27, 2013 at 11:10pm

आ० बहुत बढ़िया रचना पर बधाई । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 27, 2013 at 6:54pm

नीरज भाई , रहस्य वादी अनुपम कृति के लिये बधाई !!

Comment by Shyam Narain Verma on August 27, 2013 at 5:28pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by अरुन 'अनन्त' on August 27, 2013 at 4:01pm

बहुत खूब भाई अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

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