जो मै हूँ वही है तू , नही गर मै नही है तू ।
नही कुछ तू तू सबकुछ है , तू अंबर है ज़मी है तू ।
हवा भी तू घटा भी तू , तू ही बारिश की रिमझिम है ।
तू ही खिलता है फूलों में , सितारों की तू टिम टिम है ।
जो ना जानू कहीं ना तू , जो जानू तो यही है तू ।
परिंदों के मधुर स्वर में , तू ही नदियों की कल कल में ।
वक्त गुज़रे न गुज़रे तू , तेरा तो वास पल पल में ।
ये जीवन तुझसे पूरा है , तो इसकी हर कमी है तू ।
छुपाकर खुद को परदे में, तुझे हमने छुपा समझा ।
खता ये हो गयी हमसे , जो कुछ तेरे सिवा समझा ।
जो परदे में नही रहता , वही परदा नशीं है तू ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज
Comment
सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई नीरज भाई
आ० बहुत बढ़िया रचना पर बधाई ।
नीरज भाई , रहस्य वादी अनुपम कृति के लिये बधाई !!
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
बहुत खूब भाई अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकारें.
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