For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हाँ मै चोर हूँ [लघु कथा ]

फैक्ट्री के आफिस के सामने एक लम्बी सी कार  आ कर रुकी और भुवेश बाबू आँखों पर काला चश्मा चढ़ा कर आफिस में अपना काला बैग रख कर वह किसी मीटिग के लिए चले गए, जब वह वापिस आये तो उनके बैग में से किसी ने पचास हजार रूपये निकाल लिए थे। आफिस के सारे कर्मचारियों को पूछताछ के लिए बुलाया गया, सबकी नजरें सफाई कर्मचारी राजू पर टिक गई क्योकि उसे ही भुवेश बाबू के कमरे से बाहर आते हुए देखा गया था। अपनी निगाहें नीची किये हुए राजू के अपना गुनाह कबूल कर लिया और मान लिया कि वह ही चोर है, पुलिस आई और राजू को पकड़ कर जेल ले गई । पास ही के एक अस्पताल में राजू के बीमार कैंसर से पीड़ित बेटे का ईलाज चल रहा था । 

रेखा जोशी 

मौलिक एवं अप्रकाशित रचना 

Views: 1062

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on September 2, 2013 at 4:41am

गणेश भाई की सलाह से लघुकथा की सार्थकता सिद्ध हो रही है ...

Comment by Rekha Joshi on August 31, 2013 at 3:41pm

शुभ-शुभ,आदरणीय सौरभ जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 31, 2013 at 3:03pm

आपने समस्या बतायी, हमने सुन ली.  सुन ली और उस पर अपनी बातें कह दी. आगे आपकी ही बात है न, आदरणीया? अब हम आपकी नयी रचना की प्रतीक्षा में हैं, बस.  आगे इस पर तर्क क्या देना ?

आदरणीया,  न यह आपकी पहली रचना है, न आखरी होने वाली है.  यह सीखने-समझने की प्रक्रिया तो चलती रहेगी.


भगवान न करे इन विसंगतियों के मारों में से तीन-चार चड्ढी-बनियान पहने हमारे-आपके  या  हमारे-आपके जाने हुओं में से किसी के घर में घुस आये तो हम कैसे रियेक्ट करेंगे ! यह प्रतिक्रिया तो, हाँ अवश्य नहीं होगी ..कि बेचारे सामान जो ले गये, चलो अच्छा हुआ .. पता नहीं बेचारों ने भर पेट खाया भी होगा या नहीं.
:-))))


शुभ-शुभ
 

Comment by Rekha Joshi on August 31, 2013 at 2:28pm

आदरणीय सौरभ जी और आ डा प्राची जी ,ममै  एक बात स्पष्ट करना चाहूँ गी कि मेने किसी समस्या का  नही दिया है बल्कि समस्या बताई है कि यह सब ठीक नही हो रहा है ,आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 31, 2013 at 1:30pm

आदरणीया रेखाजी, आपके कहने को मैं सम्मान देता हूँ. आपका आशय सही हो सकता है. किन्तु आपके कहने से जैसा मैं समझ पा रहा हूँ वो यों है कि यदि किसी के दांतों में असह्य पीड़ा हो, बर्दाश्त से बाहर.. तो उसे लोहे की लाल-तप्त छड़ से अपना पेट दाग लेना चाहिये. ताकि आगे उसका सारा ध्यान  --और दर्द भी--  पेट पर केन्द्रित हो जाये. दाँत के दर्द की ओर ध्यान ही नहीं जायेगा. क्या यह समस्या का उचित समाधान होगा ?!

आदरणीया, जिस भयंकर विसंगति को दर्शाने की आप बात कर रही हैं, उसे अधिक सहज, संयत, साथ ही अत्यंत सार्थक कथा-बिम्ब चुनने की आवश्यकता है. जो तार्किक भी हो और स्वीकार्य भी.

आपकी नयी रचना की प्रतीक्षा में --
सौरभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 31, 2013 at 1:26pm

आ० रेखा जी 

आपकी लघुकथा का आदरणीय गणेश जी नें जो परिवर्तित प्रारूप प्रस्तुत किया है उससे ना केवल लघुकथा संदेशपरक लग रही है बल्कि समाज में (अमीर व गरीब के प्रति) व्याप्त नज़रिए में आई कई विद्रूपताओं को सशक्तता से उजागर भी कर रही है..

अन्यथा //अमीर और गरीब के बीच  की खाई यूँही बढती रही तो अराजकता की स्थिति// भी स्पष्टतः प्रस्तुत नहीं हो पा रही ..

इस लघुकथा प्रयास के लिए आपको बधाई और इस पर सार्थक परिवर्तन सुझा कर सभी को सीखने का अवसर सुलभ कराने  के लिए आ० गणेश जी को धन्यवाद.

Comment by Rekha Joshi on August 31, 2013 at 12:59pm

आदरणीय सौरभ पांडे जी ,,कथा का उदेश्य केवल समाज को उसका कुरूप चेहरा दिखाना मात्र है ,अगर अमीर और गरीब के बीच की खाई यूँही बढती रही तो अराजकता की स्थिति आने में देर नही है ,सादर 

Comment by Rekha Joshi on August 31, 2013 at 12:56pm

आदरणीय बागी जी ,कथा का उदेश्य केवल समाज को उसका करूप चेहरा दिखाना मात्र है ,अगर अमीर और गरीब के बीच  की खाई यूँही बढती रही तो अराजकता की स्थिति आने में देर नही है ,सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 31, 2013 at 12:54pm

मैं भाई शभ्रांशु और गणेश भाई जी के विचारों से सहमत हूँ.  शुभ्रांशूजी  ने जिस लिहाज़ से इस कथा को समझा है उस लिहाज से कथा लिखी तक न जा सकी है  इसका अधिक अफ़सोस है.

भाई गणेशजी ने जिस तरह से कथा को आयाम दिया है वह लघुकथाओं के विन्यास पर उनकी ज़बर्दस्त पकड़ का उम्दा उदाहरण है. 

मैं भी लघुकथा के इंगितों से सहज नहीं हूँ. आदरणीया रेखा जी की मंशा सही है लेकिन कथा की वैचारिकता को सम्हाल नहीं पायी हैं.

सादर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 31, 2013 at 12:38pm

//राजू ने चोरी की और उसे कबूल  भी कर लिया ,सजा भी लेने को तैयार हो गया क्योंकि उसके बेटे की जिंदगी इन सब से उपर थी //

तो क्या राजू उद्देश्य में सफल हुआ ? अगर नहीं तो फिर कथा का उद्देश्य क्या ?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service