सितार के
सुरमई तारों की झंकार से
गूँज उठी
स्वप्न नगरी..
समय के धुँधलके आवरण से
शनैः शनैः
प्रस्फुटित हो उठी
एक आकृति
अजनबी
अनजान..
स्वप्नीली पलकें
संतृप्त मुस्कान
प्राण-प्राण अर्थ
निःशब्द..
निःस्पर्श स्पंदन
कण-कण नर्तन
क्षण विलक्षण
मन प्राण समर्पण
सखा-साथी-प्रिय-प्रियतम-प्रियवर
अनकहे वायदे, गठबंध परस्पर - हमसफ़र !
Comment
सहमत हूँ आप से आ० बृजेश जी ...
//डा० प्राची, आपकी इस रचना की अंतिम से पूर्व वाली पंक्ति का तीसरा शब्द प्रयोग करने की अनुमति मिले, तो अपनी टिपण्णी इस रचना के लिए करूं ...//
इस तरह की टिप्पणियां आपत्तिजनक हैं। बेहतर है कि यहां की परिपाटी के अनुसार आदरणीय और आदरणीया जैसे संबोधनों का ही प्रयोग किया जाए। इस मंच पर जो परिवार जैसा माहौल है उसे बरकरार रखने में सभी सदस्य सहयोग करें जिससे कि सार्थक चर्चाओं में सभी सदस्य निसंकोच होकर प्रतिभाग कर सकें।
सादर!
इस सुन्दर रचना के लिए आपको बधाई।
अभिव्यक्ति का अनुमोदन कर बधाई संप्रेषित करने के लिए धन्यवाद आ० सौरभ जी
टंकण त्रुटि की ओर ध्यानाकर्षण के लिए भी आभार
सादर.
अभिव्यक्ति का शब्द संयोजन सराहने के लिए आभार प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी
आत्मीय के प्रति भाव-स्वर अनहद की आवृत्ति को जीता है. भाव-उद्बोधन की पराकाष्ठा सभी सम्बोधनों से परे या समस्त सम्बोधनों को समाहित किये हुए होती है.
इस अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाइयाँ, डॉ, प्राची.
टंकण त्रुटियाँ हैं. देख लीजियेगा.
सादर
समय के धुँधलके आवरण से
शनैः शनैः
प्रफुटित हो उठी
एक आकृति
अजनबी
अनजान..
स्वप्नीली पलकें
संतृप्त मुस्कान///////////वाह आदरणीया प्राची जी अद्भुत शब्द संयोंजन
हार्दिक बधाई आपको //सादर
///डा० प्राची, आपकी इस रचना की अंतिम से पूर्व वाली पंक्ति का तीसरा शब्द प्रयोग करने की अनुमति मिले, तो अपनी टिपण्णी इस रचना के लिए करूं ...!///
आदरणीय श्याम जुनेजा जी, आप अपनी बेटी बहनों से भी "प्रिय" संबोधन हेतु अनुमति मांगते हैं क्या ? यदि नहीं तो यहाँ क्यों ? आप के माध्यम से आप सहित सभी सदस्यों को यह ध्यान दिलाना चाहता हूँ कि ओ बी ओ आपका अपना परिवार है कोई मार्क जुकेरबर्ग की साईट नहीं ।
सादर
गणेश जी बागी
मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन
प्रस्तुत अभिव्यक्ति को समय देने के लिए आप सभी सुधिजनों की हृदय से आभारी हूँ
सादर धन्यवाद !
* प्रिय वंदना जी , आप रचना या रचनाकर्म की परिधि में किसी भी संशय को निःसंकोच पूछें..आपका सदैव स्वागत है
* आदरणीय श्याम जुनेजा जी, किसी भी रचनाकार की रचना पर टिप्पणी, किसी संबोधन के लिए प्रयुक्त शब्द विशेष पर निर्भर हो सकती है... ये जानना मेरे लिए अत्यंत आश्चर्य का विषय है.
ओबीओ मंच पर बेटियों अनुजाओं अनुजों के लिए इस शब्द का प्रयोग हम सभी करते हैं पर.. पर यह ज़रूर है कि कोई संबोधन यदि आरोपित सा नहीं लगे तभी उसको सहज अपनाया जाता है. शायद सहमत हों.
बहुत ही सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
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