राम रम में घोलकर वो
लिख रहे चौपाईयां
कोंपले, कत्थई, गुलाबी
औ हरी पुरवाईयाँ
पा भभूति हो चली हैं
पेट वाली दाईयाँ
खोल मुँह बैठा कमंडल
सुरसरि की आस में
ध्यान भी, करता यजन भी
डामरी उल्लास में
पर सरफिरा हाकिम समझता
खिज्र की रानाईयाँ
चूडि़याँ टुन से टुनककर
छन से पड़ी जिस होम में
बड़ा असर रखता गोसाईं
नीरो के उस रोम में
नरमेध के इस अश्व को
यह रेशमी विश्वास है
नर हैं सभी पंगु मगर
मादा सहज, गौ ग्रास है
फर्क है पड़ता किसे अब
कितनी कटी कलाईयाँ
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय वीनस जी, आपको बिम्ब संयोजन भाया यह एक आश्वस्ति दे गई, डर था कि इसे स्वीकृति ना मिले तो पूरी रचना निष्प्राण हो जाएगी । बहुत आभार आपका, सादर
आदरणीय सौरभ जी, आपकी प्रतिक्रिया से आश्वस्ति मिली । अभिनव बिम्बों की स्वीकृति को लेकर संशय में था पर आपकी स्वीकृति से अब राहत महसूस कर रहा हूं, सादर
आदरणीय अन्नपूर्णा जी, राम भाईजी,महिमा जी, विजयश्री जी आप सबका हार्दिक आभार, सादर
वाह वा मजा आ गया ... क्या खूबसूरत बिम्ब संयोजन है .... भव्यता नव्यता के साथ रम गई
बात तो सही ही कहा है .. .
इस गीत और अभिनव बिम्ब के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ, आदरणीय राजेश भाई
नरमेध के इस अश्व को
यह रेशमी विश्वास है
नर हैं सभी पंगु मगर
मादा सहज, गौ ग्रास है
फर्क है पड़ता किसे अब
कितनी कटी कलाईयाँ
गीत का हर शब्द बहुत ही सुंदरता से पिरोया है आपने
बधाई स्वीकारें
नरमेध के इस अश्व को
यह रेशमी विश्वास है
नर हैं सभी पंगु मगर
मादा सहज, गौ ग्रास है
फर्क है पड़ता किसे अब
कितनी कटी कलाईयाँ
वाह बहुत सुंदर आदरणीय ..आपके गीत , नवगीत .मंत्रमुग्ध कर देते हैं .. कहाँ से चुन चुन कर शब्दों को पिरोतें है और कितने कम शब्दों में क्या न क्या कह जाते हैं ... ह्रदय तल से बधाई आपको
आदरणीय राजेश जी,आपकी रचना कुछ अलग ही होती है बहुत सुन्दर///हार्दिक बधाई आपको //सादर
फर्क है पड़ता किसे अब
कितनी कटी कलाईयाँ
आदरणीय राजेश झा जी सुंदर पंक्तियाँ आपको बधाई ।
आदरणीय रविकर जी, मेरी रचना पर सुंदर प्रतिक्रिया देकर आपने मेरा मनोबल बढ़ाया, सादर आभारी हूं
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