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दो सीढियाँ चढ़ता और एक उतर जाता!

दो सीढियाँ चढ़ता और एक उतर जाता,
जबतक मै सोचता ये दिन गुज़र जाता,
ऐसे ही गुज़रते दिन,और फिर महीना गुज़र जाता,
महीने गुज़रते केवल तो कोई बात न थी
पर कमबख्त पूरा साल भी गुज़र जाता
बस दो सीढियाँ चढ़ता और एक उतर जाता
जबतक मै सोचता ये दिन गुज़र जाता

वक़्त का कहीं कोई रिश्तेदार भी न है
की दो पल कहीं बैठता और जरा बतियाता
इस्पे बस चलने का धुन सवार है
कोई कितनी भी दे सदा,
ये न रुकता बस चला जाता
इंसान बस गिनता रहता है घड़ियाँ इनकी
जितना कर सकता उतना कर पता
की दो सीढियाँ चढ़ता और एक उतर जाता
जब तक मै सोचता ये दिन गुज़र जाता

मंजिल किधर है अब मै किसको समझाता
ऐतबार कहाँ है की कोई ये समझ पता
जो भी देखता ,थोडा अचकचाता
दो सीढियां चढ़ता और एक उतर जाता
जब तक मै सोचता ये दिन गुज़र जाता

कभी देखता हूँ इतनी बड़ी दुनिया
तो मै घबरा जाता
कभी पहुंचू ऊपर तो मै खुदा से ये सवाल करू
तू कैसे ये पूरी दुनिया है चलता
किस किस की है फ़रियाद तू सुनता
और किसको है सुनाता
ओह तू खुदा है,मै क्यूँ ये बार बार भूल जाता
बस दो सीढियाँ चढ़ता और एक उतर जाता
जबतक मै सोचता ये दिन गुज़र जाता
जब तक मै सोचता ये दिन गुज़र जाता

Views: 488

Comment

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Comment by Amrita Choudhary on May 29, 2010 at 7:36pm
good one....:)
Comment by विवेक मिश्र on May 25, 2010 at 12:23pm
achchhi rachna hai.. Shubhkaamnaayein...!!!
Comment by Biresh kumar on May 24, 2010 at 8:25pm
tum agar sath dene ka wada karo
mai yunhi mast nag,e sunata rahun
thanks for all ur valuable comments!!!!!!!!!!
Comment by Admin on May 23, 2010 at 10:06am
कभी देखता हूँ इतनी बड़ी दुनिया
तो मै घबरा जाता
कभी पहुंचू ऊपर तो मै खुदा से ये सवाल करू
तू कैसे ये पूरी दुनिया है चलता,
बिरेश जी बहुत बढ़िया सोच के साथ एक अच्छा पर्यास है ये, आप मे काबिलियत है, बस लिखते रहिये, अच्छा जा रहे है,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 22, 2010 at 11:58pm
वक़्त का कहीं कोई रिश्तेदार भी न है
की दो पल कहीं बैठता और जरा बतियाता
इस्पे बस चलने का धुन सवार है
कोई कितनी भी दे सदा,
ये न रुकता बस चला जाता
bahut sahi rachna hai biresh bhai.......aisehi likhte rahe....keep it up..

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 22, 2010 at 11:30pm
मंजिल किधर है अब मै किसको समझाता
ऐतबार कहाँ है की कोई ये समझ पता
जो भी देखता ,थोडा अचकचाता
दो सीढियां चढ़ता और एक उतर जाता
जब तक मै सोचता ये दिन गुज़र जाता
Bahut badhiya kavita hai Biresh bhai, bahut hi achha paryas kiya hai aapney, aisey hi likhatey rahiyey, dhanyabad,

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