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ऐ- जान जरा बात बताओ तो सही -- ग़ज़ल (राज )

दीवार तग़ाफुल  की  ये ढाओ  तो सही

इक बाँध रिफ़ाकत का बनाओ तो सही

 

आ पाक मुहब्बत में मिटा दें सरहदें

इस ओर  जरा हाथ बढ़ाओ  तो सही 

 

हैरान परेशान खड़े हो इस कदर 

ऐ- जान जरा बात बताओ तो सही

 

मैं पार तेरे नाम से कर जाऊं तपिश 

सैलाब- ए- अंगार बहाओ तो सही

 

वीरान निगाहों  में तेरी लिख दूँ ग़ज़ल

अशआर  गुरेज़त  के सुनाओ तो सही

 

तामीर करूँ ताज़महल तेरे लिए

इक नींव तकारुब की बिछाओ तो सही

 

मैं राज़  छुपा  दिल में ही रख लूँगी सदा

पर्दा –ए- हकीक़त को उठाओ तो सही

 

**********************************

तगाफ़ुल  =उपेक्षा 

रिफ़ाकत= दोस्ती.

गुरेज़त= विरक्ति

तकारुब= समीपता

तामीर =निर्माण

मौलिक  एवं अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 4, 2013 at 9:58am

आदरणीया मीना  पाठक  जी तहे दिल से शुक्रिया |

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 9:08am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल .. हार्दिक बधाई आ० राजेश कुमारी जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 4, 2013 at 9:03am

आदरणीया मंजरी जी आपकी प्रतिक्रिया से ग़ज़ल धन्य हुई तहे दिल से आभार आपका |

Comment by mrs manjari pandey on September 3, 2013 at 9:18pm

       

        आदरणीया राजेश कुमारी जी  बहुत सुन्देर गज़ल                  !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 3, 2013 at 8:17pm

अन्ना पूर्णा जी ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया से ग़ज़ल धन्य हुई दिल से आभारी हूँ |

Comment by annapurna bajpai on September 3, 2013 at 5:00pm

आ० राजेश कुमारी जी सुंदर गज़ल के लिए हार्दिक बधाई । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 3, 2013 at 1:22pm

आदरणीय विजय मिश्र जी ग़ज़ल के अशआर ,भाव पाठकों के दिलो तक पंहुच रहे हैं इससे बड़ी दाद मेरे लिए क्या होगी ,तहे दिल से  आभारी हूँ |

Comment by विजय मिश्र on September 3, 2013 at 12:36pm
"वीरान निगाहों में तेरी लिख दूँ ग़ज़ल
अशआर गुरेज़त के सुनाओ तो सही |" बहोत खूबसूरत गजल और इसमें प्यार भरी एक गुजरीस है जो आखिरी मिसरे तक कायदे से मौजूद है . साधुवाद राजेशजी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 3, 2013 at 11:06am

आदरणीय शिज्जू जी दिल से आभारी हूँ|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 3, 2013 at 10:20am

आदरणीय एडमिन जी आपसे गुजारिश है कि ग़ज़ल के मक्ते में पर्दा –ए- हकीक़त का   की जगह  पर्दा –ए- हकीक़त को कर दीजिये प्लीज 

कृपया ध्यान दे...

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