For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऐ- जान जरा बात बताओ तो सही -- ग़ज़ल (राज )

दीवार तग़ाफुल  की  ये ढाओ  तो सही

इक बाँध रिफ़ाकत का बनाओ तो सही

 

आ पाक मुहब्बत में मिटा दें सरहदें

इस ओर  जरा हाथ बढ़ाओ  तो सही 

 

हैरान परेशान खड़े हो इस कदर 

ऐ- जान जरा बात बताओ तो सही

 

मैं पार तेरे नाम से कर जाऊं तपिश 

सैलाब- ए- अंगार बहाओ तो सही

 

वीरान निगाहों  में तेरी लिख दूँ ग़ज़ल

अशआर  गुरेज़त  के सुनाओ तो सही

 

तामीर करूँ ताज़महल तेरे लिए

इक नींव तकारुब की बिछाओ तो सही

 

मैं राज़  छुपा  दिल में ही रख लूँगी सदा

पर्दा –ए- हकीक़त को उठाओ तो सही

 

**********************************

तगाफ़ुल  =उपेक्षा 

रिफ़ाकत= दोस्ती.

गुरेज़त= विरक्ति

तकारुब= समीपता

तामीर =निर्माण

मौलिक  एवं अप्रकाशित 

Views: 1028

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 3, 2013 at 10:18am

माफ़ कीजिये गणेश जी वजन में एक टंकण मिस्टेक हो गई सही वजन है ----२ २ १ ,१ २ २ १ ,१ २ २ २ , १ २ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 3, 2013 at 9:52am

आदरणीय अभिनव अरुण सर मै आपकी बात से सहमत तो हूँ मगर पूरी तरह नही क्योंकि बह्र को निभाने के लिए कई बार ऐसे शब्द लेने पढ़ते हैं उदाहरण के लिए इसी ग़ज़ल को ले लीजिए रिफाकत(१२२) की जगह दोस्ती अगर ले लें तो वज्न हो जाएगा २२ जिसे २१२ भी लिया जा सकता है और ये मिसरा बह्र से खारिज हो जायेगाl यदि मित्रता लिखते हैं तब भी ये समस्या आयेगीl


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 3, 2013 at 9:19am

२ २ १  १ २ २ २   १ २ २ २   १ २

जो आपने वजन बताई हैं, कृपया उसपर एक बार सभी मिसरों को तकती करें आदरणीया, भाई अभिनव अरुण ने बहुत ही अच्छी बात कही है, शब्द प्रचलित हो । शेष प्रयास बढ़िया है, बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 3, 2013 at 9:08am

प्रिय अभिनव अरुण जी आप ने सही कहा उर्दू के क्लिष्ट शब्दों को ग़ज़ल में पिरोने का ये दुस्साहस तो मैंने किया है ,हिंदी भाषी होने पर एक उर्दू ग़ज़ल लिखने का प्रयास किया है डर भी रही थी की शब्द मिसफिट ना हुए हों किन्तु ये प्रयोग दिल ने कहा तो किया कभी कभी दिल की आवाज भी सुननी पड़ जाती है आपको ग़ज़ल के भाव शेर पसंद आये यही बहुत है मेरे लिए दिल से आभारी हूँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 3, 2013 at 9:01am

प्रिय वंदना जी ग़ज़ल आपको अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 3, 2013 at 9:00am

प्रिय शुभ्रा जी आपका तहे दिल से शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 3, 2013 at 8:58am

आदरणीय राज नवाद्वी जी सही पकड़ा सच में इस बात पर ध्यान नहीं दिया एडमिन  जी से ठीक करने का अनुरोध करुँगी तहे दिल से आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 3, 2013 at 8:56am

आदरणीय शुज्जू जी आप ने सही कहा यही वज्न लिया है आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 3, 2013 at 8:53am

आदरणीय गणेश जी सच कहूँ तो इस बार ये ग़ज़ल पहले लिखी गई और वज्न बाद में तय किया जिसका  पैमाना  इस तरह है  ---२ २ १  १ २ २ २   १ २ २ २   १ २    अब ये कौन सी ब़ह्र हुई मुझे खुद पता नहीं बस लिख दी आप को कैसी लगी अपनी राय तो बताइये 

Comment by Abhinav Arun on September 3, 2013 at 8:18am

गज़ल अच्छी है ...शेर और भाव बढ़िया बन पड़े हैं .. सिर्फ़ एक बात .. अन्यथा नही लेंगी इस उम्मीद के साथ .. हमें बोलचाल की भाषा में कहने का प्रयास करना चाहिए ..वही चीज़ संप्रेषनीयता की कसौटी पर खरी उतरती है सिर्फ़ किसी मोह में सायlस उर्दू अरबी फ़ारसी के शब्द डालने से बचना श्रेयस्कर रहता है . ..तगाफ़ुल प्रचलित है परंतु..
रिफ़ाकत गुरेज़त तकारुब जैसे अप्रचलित दुरूहताओं से हम बच सकते हैं ..सादर !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service