दीवार तग़ाफुल की ये ढाओ तो सही
इक बाँध रिफ़ाकत का बनाओ तो सही
आ पाक मुहब्बत में मिटा दें सरहदें
इस ओर जरा हाथ बढ़ाओ तो सही
हैरान परेशान खड़े हो इस कदर
ऐ- जान जरा बात बताओ तो सही
मैं पार तेरे नाम से कर जाऊं तपिश
सैलाब- ए- अंगार बहाओ तो सही
वीरान निगाहों में तेरी लिख दूँ ग़ज़ल
अशआर गुरेज़त के सुनाओ तो सही
तामीर करूँ ताज़महल तेरे लिए
इक नींव तकारुब की बिछाओ तो सही
मैं राज़ छुपा दिल में ही रख लूँगी सदा
पर्दा –ए- हकीक़त को उठाओ तो सही
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तगाफ़ुल =उपेक्षा
रिफ़ाकत= दोस्ती.
गुरेज़त= विरक्ति
तकारुब= समीपता
तामीर =निर्माण
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
माफ़ कीजिये गणेश जी वजन में एक टंकण मिस्टेक हो गई सही वजन है ----२ २ १ ,१ २ २ १ ,१ २ २ २ , १ २
आदरणीय अभिनव अरुण सर मै आपकी बात से सहमत तो हूँ मगर पूरी तरह नही क्योंकि बह्र को निभाने के लिए कई बार ऐसे शब्द लेने पढ़ते हैं उदाहरण के लिए इसी ग़ज़ल को ले लीजिए रिफाकत(१२२) की जगह दोस्ती अगर ले लें तो वज्न हो जाएगा २२ जिसे २१२ भी लिया जा सकता है और ये मिसरा बह्र से खारिज हो जायेगाl यदि मित्रता लिखते हैं तब भी ये समस्या आयेगीl
२ २ १ १ २ २ २ १ २ २ २ १ २
जो आपने वजन बताई हैं, कृपया उसपर एक बार सभी मिसरों को तकती करें आदरणीया, भाई अभिनव अरुण ने बहुत ही अच्छी बात कही है, शब्द प्रचलित हो । शेष प्रयास बढ़िया है, बधाई ।
प्रिय अभिनव अरुण जी आप ने सही कहा उर्दू के क्लिष्ट शब्दों को ग़ज़ल में पिरोने का ये दुस्साहस तो मैंने किया है ,हिंदी भाषी होने पर एक उर्दू ग़ज़ल लिखने का प्रयास किया है डर भी रही थी की शब्द मिसफिट ना हुए हों किन्तु ये प्रयोग दिल ने कहा तो किया कभी कभी दिल की आवाज भी सुननी पड़ जाती है आपको ग़ज़ल के भाव शेर पसंद आये यही बहुत है मेरे लिए दिल से आभारी हूँ |
प्रिय वंदना जी ग़ज़ल आपको अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ
प्रिय शुभ्रा जी आपका तहे दिल से शुक्रिया
आदरणीय राज नवाद्वी जी सही पकड़ा सच में इस बात पर ध्यान नहीं दिया एडमिन जी से ठीक करने का अनुरोध करुँगी तहे दिल से आभार आपका |
आदरणीय शुज्जू जी आप ने सही कहा यही वज्न लिया है आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से शुक्रिया
आदरणीय गणेश जी सच कहूँ तो इस बार ये ग़ज़ल पहले लिखी गई और वज्न बाद में तय किया जिसका पैमाना इस तरह है ---२ २ १ १ २ २ २ १ २ २ २ १ २ अब ये कौन सी ब़ह्र हुई मुझे खुद पता नहीं बस लिख दी आप को कैसी लगी अपनी राय तो बताइये
गज़ल अच्छी है ...शेर और भाव बढ़िया बन पड़े हैं .. सिर्फ़ एक बात .. अन्यथा नही लेंगी इस उम्मीद के साथ .. हमें बोलचाल की भाषा में कहने का प्रयास करना चाहिए ..वही चीज़ संप्रेषनीयता की कसौटी पर खरी उतरती है सिर्फ़ किसी मोह में सायlस उर्दू अरबी फ़ारसी के शब्द डालने से बचना श्रेयस्कर रहता है . ..तगाफ़ुल प्रचलित है परंतु..
रिफ़ाकत गुरेज़त तकारुब जैसे अप्रचलित दुरूहताओं से हम बच सकते हैं ..सादर !!
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