गलती का पुतला मनुज, दनुज सरिस नहिं क्रूर |
मापदण्ड दोहरे पर, व्यवहारिक भरपूर |
व्यवहारिक भरपूर, मुखौटे पर चालाकी |
रविकर मद में चूर, चाल चल जाय बला की |
करे स्वार्थ सब सिद्ध, उमरिया जैसे ढलती |
रोज करे फ़रियाद, दाल लेकिन नहिं गलती ||
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आदरणीय श्याम जुनेजा जी-
करे स्वार्थ सब सिद्ध, उमरिया जस तस ढलती -
करता अब फ़रियाद, दाल लेकिन नहिं गलती ||
इन दो पंक्तियों की व्याख्या करने का प्रयास किया है-
शायद
विरोधाभास अब न नजर आये
सादर-
हमेशा स्वागत है आदरणीय-
युवा अवस्था बीतती, ढली उमरिया आज |
शक्ति घटे होवे विवश, दे प्रभु को आवाज |
दे प्रभु को आवाज, रात-दिन जपता माला |
जाते वे भी छोड़, जिन्हें पलकों पर पाला |
रविकर होता वृद्ध, बढ़ी ईश्वर प्रति आस्था |
प्रभु नहिं करें क़ुबूल, याद कर युवा अवस्था ||
बात बन गई आदरणीय :-)
आभार आदरणीय अभिनव जी, आदरणीय गिरि राज जी- ,
आदरणीय बागी जी-
मापदण्ड दुहरे मगर, व्यवहारिक भरपूर |
जी आदरणीय-
यह परिवर्तन कर दिया है-मूल रचना में-
सादर
सुंदर , गागर मे सागर समान रचना के लिए हार्दिक बधाई आ. राविकर जी !!
मापदण्ड दोहरे पर, व्यवहारिक भरपूर |
अंडर लाइन पढ़ने में प्रवाह बाधित लग रहा है, बाकी कुण्डलिया अच्छी लगी, बधाई हो ।
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