एक
तुम
मुझे ऐसे मिले
जैसे कि मंदिर में किसी
देवता के आगे
फैली
अंजलि में
फूल
देव मस्तक का
आ कर के गिरे /
या किसी प्यासे पपीहे को
मिले
एक बूँद पानी ।
प्यार सी
नजरो को छू कर
तुम खिले ऐसे
कि जैसे
ऋतु बसंत में
किसी कम्पित डाली पर
सोई कली
मंद , शीतल पवन का
स्पर्श पा कर के खिले /
या खिले कवि ह्रदय कोई
देख कर वर्षा सुहानी ।
दो घडी को
साथ चल कर
तुम छुपे ऐसे
कि जैसे
श्याम घन के बीच से
चपला अचानक
दो घडी को झांक
जा वापस छुपे /
या कोई पल बीतता सा
क्षण में
बन जाये कहानी ।
दो
कभी का वो क्षण
अनकहा
कहा था /कान में चुपके से
' प्यार के माने क्या?'
कि सपने हज़ार बुने /
कि हाथ बढाया
अभी आसमान छू लूं /
ये धरती, हवाएं
ये बारिश का पानी
मेरे थे /उसी क्षण
सभी /
वो क्षण
डायरी का एक पृष्ठ बन कर
रह गया ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
अरविन्द भटनागर ' शेखर'
Comment
आप बहुत बुरे हैं, बहुत दूर तक उतरते हैं और निकलने का नाम ही नहीं लेते, कई बार पढूं फिर भी दिल नहीं भरता । एक नशा सा भर देती है तान्या श्रृंखला की रचना, सादर
बहुत सुन्दर रचना है। आपको हार्दिक बधाई।
सादर,
विजय निकोर
बहुत बहुत बधाई सुन्दर रचना हेतु
शुभ्कामनायें अरविन्द जी . भावप्रवण अभिव्यक्ति के लिये. ऐसे ही आगे बढ्ते रहें !
भावों और शब्दों का सुंदर ताना बाना बुना है। आपको हार्दिक बधाई!
सुंदर भावों से सजी रचना , बधाई आपको आ० अरविंद जी ।
सुन्दर शब्दों से सजी बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय //हर्दिक बधाई आपको
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
अरविन्द भटनागर ' शेखर'
अतिसुन्दर अभिव्यक्ति!
बहुत खूबसूरत एहसास को शब्दबद्ध किया है
बहुत बहुत शुभकामनाएँ
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