अलार्म की आवाज सुन कर अदिति की आँख खुल गयी | उसने मोबाइल उठा कर अलार्म बंद कर दिया और समय देखा सुबह के ५ बज गए थे जल्दी से उठ कर काम में लग गई सफाई, नहाना, पूजा बेटे को स्कूल और पति को ऑफिस भेज कर एक लम्बी साँस ली | कमरे में नजर घुमा के देखा तो पूरा कमरा अस्त व्यस्त हो गया था, फिर से उसने आंचल को कमर में खोंसा और काम में जुट गई | काम समेटते समेटते दोपहर हो गयी और बेटे के स्कूल से आने का समय भी | वो दौड़ कर रसोई में जा गैस पर दाल गर्म होने के लिए रख देती है इतने में बेटा आ जाता है, आते ही बैग, मोज़े, शर्ट, पैंट जूते सब इधर-उधर फैंक कर बोला "मम्मी जल्दी से खाना दो बहुत भूख लगी है |" .."हाँ बेटा बस एक मिनट, देती हूँ |" खाने के बाद बेटा टी वी देखने लगा और अदिति फिर से कमरा व्यवस्थित कर के बेटे का युनीफाम धोने चली गयी | शाम के चार बज चुके थे | " मम्मी चाय बना दो कोचिंग जाना है |" अपना हाथ पोछते हुए अदिति बोली "अभी बनाती हूँ बेटा"..उफ्फ्फ़ अभी तक उनका कपड़ा स्त्री नहीं किया मैंने |
रात का सारा काम ख़त्म कर के अदिति ने सुबह की तैयारी भी कर ली | बेटा सो गया, एक लम्बी साँस ले कर वो भी बिस्तर पर आ के धम्म से बैठ गयी और प्रणव (पति)से बोली "थक जाती हूँ सारा दिन काम कर के अब जा के फुर्सत मिली |" प्रणव ने घूरा और कहा " तुम्हारे पास मेरे लिए भी कभी समय होता है ? जब भी आती हो थकी हुई आती हो हम दोनों के जाने के बाद सारा दिन सोती हो और टी वी देखती हो,इस समय रोज का बहाना है तुम्हारा " बहुत थक गयी हूँ |"
अदिति ने उठ कर लाईट ऑफ़ की और लेट गयी अँधेरे में उसकी आँखों से दो बूँद आँसू लुढ़क गए वो सोचने लगी कि पूरे दिन में उसके लिए कौन सा समय था और उसने खुद के लिए क्या किया |
मीना पाठक
मौलिक /अप्रकाशित
Comment
आदरणीया मीना जी ..नारियों के जीवन को उनके कर्म और त्याग को वर्णित करता हुआ सुन्दर आलेख ..बड़ी जरुरत होती है एक दूजे के मनः स्थिति को समझ कर चलने और प्रेम से सराबोर कर देने की ....ऐसा जब हो जाए तो आनंद और आये
आभार
भ्रमर ५
आदरणीय विजय मिश्र जी रचना सराहने के लिए हार्दिक आभार
आदरणीय डा० अविनाश मिश्रा जी बहुत बहुत आभार
परम आदरणीय विजय निकोर जी उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार
प्रिय गीतिका जी मार्गदर्शन हेतु आभार
आदरणीय बृजेश जी बहुत बहुत आभार
आदरणीया मीना जी ..मौन और आंसू पत्थरों को भी पिछला देते हैं प्रणव जिस दिन दिन अहसास करेगा प्रेम के झरने बहेंगे आँखों से ....सुंदर कृति पर धेरोब बधाई
अच्छी लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई।
सादर,
वि्जय निकोर
पीयूष भाई की बात तो एकदम सही है| दोनों कथाएँ समांतर ही चल रही है| आद्रणीय बागी जी सही कह रहे है, विषय बहुत आम है इस कारण से यह समानता का संयोग बना है|
रचना के शब्द और भाव को और समय देकर इसके अस्तित्व को असाधारण किया जा सकता है|
सादर !!
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