करें हम
मान अब इतना
सजा लें
माथ पर बिन्दी।
बहे फिर
लहर कुछ ऐसी
बढ़े इस
विश्व में हिन्दी।।
गंग सी
पुण्य यह धारा
यमुन सा
रंग हर गहरा
सुबह की
सुखद बेला सी
धरे है
रूप यह हिन्दी।।
मधुरता
शब्द आखर में
सरसता
भाव भाषण में
रसों की
धार छलके तो
करे मन
तृप्त यह हिन्दी।।
तोड़कर
बॅंध दासता के
सभी भ्रम
जाल भाषा के
बसा लें
प्रेम अब इसका
प्रथम हो
देश में हिन्दी।।
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीया महिमा जी आपका हार्दिक आभार!
गंग सी
पुण्य यह धारा
यमुन सा
रंग हर गहरा
सुबह की
सुखद बेला सी
धरे है
रूप यह हिन्दी।।.... वाह वाह बहुत ही सुंदर नवगीत बहुत-२ बधाई आपको ....
जी, यही वजह है जो प्रवाह में बाधा है। मैंने यही कहना चाहा था। इस खण्ड के शिल्प में भिन्नता ही कारण है। मैं दुरूस्त करने का प्रयास करता हूं।
सादर!
आदरणीय बृजेश जी
आपने ५-९ के खण्डों में यति को रखा है
पर सभी जगह ९ वाले खंड में पहला शब्द ३ मात्रा का है और इस वाक्यांश में ही २ मात्रा का ...
आदरणीय निकोर साहब, आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय केवल भाई आपका हार्दिक आभार!
आदरणीया प्राची जी आपका हार्दिक आभार!
दरअसल इस गीत की संरचना में मैंने पहली पंक्ति में 5 मात्रा और दूसरी में 9 मात्रा रखीं हैं इसलिए उस नियम का पालन नहीं कर सका।
//तोड़कर बंध दासता के//
इस पंक्ति में 'तोड़' के 21 होने और 'ड़' की उपस्थिति हो सकता है प्रवाह में बाधक बन रही हो। इसे दूर करने का प्रयास करता हूं।
सादर!
//मधुरता
शब्द आखर में
सरसता
भाव भाषण में
रसों की
धार छलके तो
करे मन
तृप्त यह हिन्दी।।//
बहुत ही सुन्दर रचना। बधाई।
आ0 बृजेश भाई जी, वाह..वाह..बहुत सुन्दर सरस प्रस्तुति। आपको बहुत-बहुत हार्दिक बधाई। सादर,
आदरणीय बृजेश जी
मातृभाषा की शान को समर्पित बहुत सुन्दर नवगीत..वाह!
सुबह की
सुखद बेला सी
धरे है
रूप यह हिन्दी।।..................बहुत ताजगी भरी पंक्तियाँ , अति सुन्दर! मधुर !
मधुरता
शब्द आखर में
सरसता
भाव भाषण में................वाह !
रसों की
धार छलके तो
करे मन
तृप्त यह हिन्दी।।.................क्या बात है, बहुत सुन्दर मनमुग्ध हो गया इस प्रवाह पर इस लालित्य पर
किन्तु ,
तोड़कर
बॅंध दासता के..............सिर्फ इस वाक्यांश में प्रवाह बाधित है, शब्द समुच्चय को साधने से यह सही हो जाएगा ५.२.५.२ की जगह
यदि ५.३.४.२. मात्रिक क्रम साधने का प्रयत्न हो तो, यह सही हो सकता है.. सम शब्दों के बाद सम शब्द और विषम के बाद विषम शब्द लेने से गेयता निर्बाध रहती है.
इस अतिसुन्दर समर्पित सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई
सादर शुभकामनाएँ
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