देख तिरंगा लहराता
मन उठा, भ्रमर सा जागा है
पुलकित सूरज की किरनें
रंग तीन यह जो चमकें
इस मंद हवा की लहरों पर
मन झूम-झूमकर गाता है
सोंधी खुशबू माटी की
अलकें खिलतीं फूलों की
खेतों में लहराती फसलें
अब उमग-उमग मन जाता है
जीवन मेरा धन्य हुआ
भारत में जो जन्म हुआ
ये प्राण निछावर हैं इस पर
यह धरती अपनी माता है
.
बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय ब्रजेश जी बधाई सुन्दर रचना रचने के लिए
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको! |
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