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मदिरा सवैया - एक छंद

प्रेम कि बांसुरि बाजि रही  पिय के मन को अकुलाय रही 

भोर समान खिलै मुखि चन्द चकोर पिया को बुलाय रही 

रीझि गया मन लाजि गया तन सांझ क़ि बात सुनाय रही 

रीति क़ि प्रीति बनी बिगरी पर प्रीति की  रीति बताय रही     

आशीष श्रीवास्तव ( सागर सुमन ) 

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 960

Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 7, 2013 at 3:45pm

सुंदर रचना ..हार्दिक  बधाई 

Comment by ram shiromani pathak on September 7, 2013 at 3:01pm

आदरणीय भाई आशीष जी सुन्दर मदिरा सवैया हुआ है //हार्दिक बधाई आपको  

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 7, 2013 at 10:49am

आदरणीय प्रयास हेतु बधाई स्वीकारें अन्य आदरणीय रविकर सर जी ने कह ही दिया है उनके कहे का सज्ञान करें.

Comment by annapurna bajpai on September 6, 2013 at 11:40pm

आ0 बढ़िया सवैया छंद की रचना हुई है , बहुत बधाई आपको । 

Comment by Meena Pathak on September 6, 2013 at 5:35pm

बधाई आदरणीय ... बहुत सुन्दर रचना


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2013 at 11:39am
सुन्दर भाव , सुन्दर रचना , आदरणीय बहुत बधाई !!
Comment by Shyam Narain Verma on September 6, 2013 at 11:06am
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by रविकर on September 6, 2013 at 10:40am

बढ़िया भाव -उत्तम प्रस्तुति-
आभार आदरणीय

कुछ दीर्घ को लघु करना चाहिए था-जैसे-

प्रेम कि बांसुरि बाजि रही पिय के मन को अकुलाय रही
भोर समान खिलै मुखि चन्द चकोर पिया कु बुलाय रही
रीझि गया मन लाजि गया तन सांझक़ि बात सुनाय रही
रीति क़ि प्रीति बनी बिगरी पर प्रीतिक रीति बताय रही

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