मदिरा मत समझो मुझे , नहीं नशे की चीज़
एक दीवानी प्रेम की , प्रेम से जाओ भीज
Comment
आ० आशीष जी
कुंडलिया छंद प्रस्तुति के लिए बधाई ..पर छंद रचनाओं में मात्राओं के प्रति सजग रहना आवश्यक ही होता है.. आ० अरुण शर्मा जी के इंगितों पर गौर करें.
सादर.
आदरणीय आशीष भाई कुण्डलिया छंद के भाव बेहद अच्छे हैं किन्तु मात्रा पर आपने ध्यान नहीं दिया दोहा पद के तृतीय और चतुर्थ चरण में मात्रा अधिक हो रही है साथ ही साथ रोला के चरणों में भी मात्राएँ ठीक नहीं हैं कृपया एक बार पुनः देख लें. प्रयास हेतु बधाई स्वीकारें.
आदरणीय आशीष जी सुंदर कुण्डलिया , बहुत बधाई आपको ।
बहुत सुंदर कुंडली छंद , बधाई आदरणीय आशीष जी
आदरणीय आशीष भाई , प्रेम की परिभाषा बयान करती आपकी कुंडलिया सुन्दर लगी !! बधाई !!
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