समय बड़ा बलवान है ,देता सबको सीख !
पड़ जाती है माँगनी ,राजा को भी भीख !!१
अपना अपना बोलकर ,भरते अपना पेट !
मानवता भी चढ़ गयी ,यहाँ स्वार्थ की भेंट !!२
जहर उगलते है यहाँ ,आपस में ही लोग!
फिर कैसे सौहार्द हो ,कैसे जाये रोग !!३
अज्ञानी देने लगा ,जबसे सबको ज्ञान !
ऐसे मूर्ख समाज का ,कैसे हो कल्यान !!४
ऊँच नींच कोई नहीं ,सुन ईश्वर पैगाम !
बड़े प्रेम से खा गए ,सबरी के फल राम !!५
पैसे से होती यहाँ ,सबकी अब पहचान !
पैसा ही माँ बाप है ,पैसा ही भगवान !!६
क्या होती है भुखमरी,वो क्या जानें तात !
जिसने काटा ही नहीं ,भूखे दिन या रात !!७
दुनियाँ के बाज़ार में ,एक विचित्र दुकान !
मानव मानव को ठगे ,मानव या शैतान !!८
मानव कितना मूर्ख है ,कर बैठा है भूल !
फूल तोड़ने को चला ,बोया जहाँ बबूल !!९
लोग प्रेम में कर रहे ,देखो अब अनुबंध !
कम ही दिखता है मुझे ,प्यारा मृदु सम्बन्ध !!१०
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय निकोर जी //सादर
प्रिय राम शिरोमणि जी बहुत ही सुन्दर संदेशपरक दोहे लिखे हैं बस मूर्ख में टंकण त्रुटी है ठीक कर लेना
बहुत बहुत बधाई व् शुभकामनायें
वाह! बहुत ही सुंदर दोहे! आपको हार्दिक बधाई!
मानव कितना मुर्ख है ,कर बैठा है भूल !
फूल तोड़ने को चला ,बोया जहाँ बबूल !!९
लोग प्रेम में कर रहे ,देखो अब अनुबंध !
कम ही दिखता है मुझे ,प्यारा मृदु सम्बन्ध !!१०
आदरणीय राम शिरोमणी जी प्यारे और सरल दोहे ! पढ कर अच्छा लगा ! बधाई
सुंदर दोहावली, बधाई स्वीकारें राम भाई
सुन्दर दोहों के लिए बधाई।
सादर,
विजय निकोर
बहुत बहुत आभार आदरणीय रविकर जी टंकण अशुद्धि को इंगित करने के लिए , //सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी //सादर
मूर्ख का प्रयोग दो स्थान पर-
दोनों जगह शुद्ध करें-
मात्रा भी ठीक ही रहेगी-
सादर बधाई प्रियवर-
राम शिरोमणी भाई , बढ़िया दोहावली जीवन की सच्चाइयों से जुड़ी हुई !! बधाई !!
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