इस रचना में एक अधिवक्ता की पत्नी का दर्द फूट पड़ा है ..................
ना जइयो तुम कोर्ट हे !
मेरे दिल को लगा के ठेस ....
जब जग जाहिर ये झूठ फरेबी
बार-बार लगते अभियोग
अंधी श्रद्धा भक्ति तुम्हारी
क्यों फंसते झूठे जप-जोग
आँखें खोलो करो फैसला
ना जाओ लड़ने तुम केस .............
ना जइयो तुम कोर्ट हे !
मेरे दिल को लगा के ठेस ....
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जान बचा-ना न्याय दिला-ना
बातें प्रिय तेरी सच्ची
ये गरीब वो पैसे वाला
घुट-घुट मरती हैं बच्ची
रिश्ते-नाते मात-पिता सब
दर्द में उलझे मरते रोज
आँखें खोलो करो फैसला
ना जाओ लड़ने तुम केस .............
ना जइयो तुम कोर्ट हे !
मेरे दिल को लगा के ठेस ....
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तेरे बीबी बच्चों को जब
धमकी, दिल दहलायेगी
क्या गवाह तुम बने रहोगे ?
टूट नहीं तुम जाओगे ?
न्याय की देवी को प्रियतम हे !
क्या सच्चाई कह पाओगे ?
आँखें खोलो करो फैसला
ना जाओ लड़ने तुम केस .............
ना जइयो तुम कोर्ट हे !
मेरे दिल को लगा के ठेस ....
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दस-दस झूठों में सच्चा 'इक'
घिसता नाक रगड़ता है
तू बहुमत-बहुमत करके क्यों
सच्चाई से चिढ़ता है
पोथी पत्रा नियम नीति को
सच्ची राह पे ले आओ
चलो नहीं हे ! खेती करते
कोर्ट कचहरी मत जाओ
आँखें खोलो करो फैसला
ना जाओ लड़ने तुम केस .............
ना जइयो तुम कोर्ट हे !
मेरे दिल को लगा के ठेस ....
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आसमान से गोले गिरते
धरती सब सहती जाती
धैर्य प्रेम ममता स्नेह ही
जल-जल हरियाली लाती
अतिशय प्रलय प्रकोप का कारक
दुष्ट निशाचर बन जाते
साधु -संत क्या पापी फिर तो
काल के गाल समा जाते
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आँखें खोलो करो फैसला
ना जाओ लड़ने तुम केस .............
ना जइयो तुम कोर्ट हे !
मेरे दिल को लगा के ठेस ....
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"मौलिक व अप्रकाशित"
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'५
9.20 A.M.-10.40 A.M.
कुल्लू हिमाचल
08.09.2013
Comment
आदरणीया अन्नपूर्णा जी रचना में छिपे दर्द को आप ने समझा और इनके भावों को सराहा सुन हर्ष हुआ आभार
भ्रमर ५
आदरणीया परवीन जी रचना ने आज के समाज के दर्द को उभारा और आप से सराहना मिली ख़ुशी हुयी
भ्रमर ५
आदरणीय सुरेन्द्र जी बहुत सुंदर बहुत बढ़िया भाव , बधाई आपको ।
आदरणीय रविकर भाई जी प्रोत्साहन हेतु आभार समर्थन मिला ख़ुशी हुयी .....अपना स्नेह बनाये रखें
भ्रमर ५
आदरणीया विजयश्री जी ..अभिनन्दन ...
रचना के भाव आज के हालात को सटीक व्यक्त कर सकी और रचना आप को सशक्त लगी सुन ख़ुशी हुयी
पहल तो निश्चित रूप से करनी होगी प्रोत्साहन सब की सहायता जरुरी है कानून में सुधार भी जरुरी है
भ्रमर ५
मार्मिक-
आभार भाई जी-
सच्चाइयों को उजागर करती एक सशक्त अभिव्यक्ति ...
पहल तो फिर भी करनी होगी
बधाई स्वीकारें सुरेन्द्र कुमार शुक्ला जी
आदरणीय गिरिराज भाई इस रचना के भाव हमारे कानून की खामियां गवाह साक्ष्य के बिना कुछ नहीं , अधिवक्ताओं के आंतरिक दर्द को आप ने समझा ख़ुशी हुयी
आभार
भ्रमर ५
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