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अभी जो यूँ सपनो में आने लगें हे /
वो अनहोनी बातें बताने लगें हे /
पता उनके सच का कहाँ झूठ का हे,
जो हर बात पे छटपटाने लगें हे /
चलों नाम लिख दे जरा साथ उन के ,
यहाँ आते जिन को जमाने लगें हे,/
जो दिन बीत जाये दुबारा ना आये ,
कई राज दिल को लुभाने लगें हे /
यूँ शोलों की खातर जलेंगे नहीं हम ,
अँधेरों में दीये जलाने लगें हे /
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
जहाँ ग़ज़ल अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रही, टंकण त्रुटियों ने सारा मजा किरकिरा कर दिया ....
भाई जी ... पत्थर में दरार हो तो फर्क नहीं पड़ता ....आईने में बाल भी खटकता है... ग़ज़ल आईना है पत्थर नहीं
सभी अदीबों का मेरी शायरी प्रति आभार प्रगट करने के लिए धन्यवाद
आ0 मोहन जी सुंदर गजल के लिए आपको बधाई ।
यूँ शोलों की खातर जलेंगे नहीं हम ,
अँधेरों में दीये जलाने लगें हे
सकारात्मक भाव लिए इन पंक्तियों के लिए हार्दिक बधाई मोहन बेगोवाल जी
आदरनीय डाक्टर ललित जी ,
आप जी ने मेरी गजल की इस्लाह की आप का ,बहुत बहुत आभारी हूँ ,आगे से भी मार्गदर्शन करिएगा,मेहरबानी होगी // प्रबंधकोण का भी शुक्रगुजार , जिन्होंने मेरी रचना का अनुमोदन कर अपनी खामियों को समझने का मौका प्रदान किया
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अभी जो ये सपनो में आने लगें हैं
वो अनहोनी बातें बताने लगें हैं
लगे ना कहीं अब अंदाज सच्च झूठ में, --- 'ना' शब्दकोष में कोई शब्द नहीं है- पता उनके सच का, कहाँ झूठ का है
जो हर बात पे छटपटाने लगें हे
चलों नाम लिख दे जरा साथ उन के ,
यहाँ आते जिन को जमाने लगें हे,
जो दिन बीत जाये दुबारा ना आये ,
तभी राहों पे फूल उगाने लगें हे ---------------बहर से बाहर हो रहा है ----------कई राज दिल को लुभाने लगे है
यूँ शोलों की खातर जलेंगे नहीं हम ,
अंधेरों में दीये जलाने लगें हे /
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