For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो  हमें  कब मिला है खुदा  की तरह ।

जो रहा  है  सदा   बन हवा  की तरह ।

अब  उसे  कैसे  पहचान वो  पायेगा,

जो यहाँ  बदलता है अदा की तरह ।

अब  वही  राह दिखाने आया है मुझे,

जो  मेरा था  कभी  बेवफा की तरह।

वो क्या  भर देगा खुशिय़ा दामन तेरे,

जिन का अपना रहा है खला की तरह।

हम भुलाया जमाने को जिस के लिये ,

साथ वो  फिर क्यूँ  है सज़ा की तरह।

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

Views: 547

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on November 13, 2013 at 12:03am

अच्छा प्रयास है, शुभेच्छाएं आदरणीय। 

Comment by Sushil.Joshi on November 12, 2013 at 8:57pm

शानदार प्रस्तुति है आ0 मोहन भाई जी..... बहुत बहुत बधाई....

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 12, 2013 at 4:38pm

आदरणीय मोहनजी ...

अब  उसे  कैसे  पहचान वो  पायेगा,

जो यहाँ  बदलता है अदा की तरह ..इस सुंदर ग़ज़ल का ये शेर मुझे बेहद भाया ..सादर बधाई के साथ 

Comment by ram shiromani pathak on November 11, 2013 at 5:50pm

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति  आदरणीय मोहन जी ....बहुत बहुत बधाई  आपको  सादर 

Comment by annapurna bajpai on November 10, 2013 at 8:54pm

सुंदर गजल । बधाई आपको आ0 मोहन बेगोवाल जी । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 10, 2013 at 8:47pm

आदरणीय मोहन भाई , बहुत सुन्दर गज़ल कही है आपने , आपको बहुत बधाई !!!!! कुछ शे र बह्र से बाहर हो रहे है !

!!! कृपया सुधार लें !!!

Comment by मोहन बेगोवाल on November 10, 2013 at 7:05pm

 शिज्जू जी, आप जी ने ठीक कहा,ये मुतदारिक मुसम्मन सालिम(212 212 212 212) हैं,गोपाल जी ,आप जी का भी उत्साह्त करने के लिए  धन्यवाद 

Comment by umesh katara on November 10, 2013 at 6:57pm

अच्छी लेखनी है आदरणीय वाहाहाह

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 10, 2013 at 6:03pm

बेगोवाल जी . श्या शायद टाइप त्रुटि  है  I  मैं शिल्प पर अधिक ध्यान नहीं देता  वह तो मंजते  मंजते  निखरेगा  पर  यदि भाव मन को छू  लें तो वही रचना की  सफलता है  I  फिलहाल आगाज़ ठीक है अंजाम आपकी मेहनत पर निर्भर करेगा I  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 10, 2013 at 5:08pm

आदरणीय बेगोवाल सर प्रथम दृष्टया आपकी ग़ज़ल से ऐसा लग रहा है आपने बह्रे मुतदारिक मुसम्मन सालिम(212 212 212 212) पे ये ग़ज़ल कही है मगर फिर भी आप बह्र का उल्लेख कर दें तो चर्चा आसान हो जायेगी,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
12 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service