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एक पुरानी रचना को कुछ गेय बनाने का प्रयास किया है। देखें, कितना सफल रहा।

 

इन नयनों में आज प्रभू

आकर यूं तुम बस जाओ

जो कुछ भी देखूं मैं तो

एक तुम ही नजर आओ

 

धरती-नभ दूर क्षितिज में

ज्यों आलिंगन करते हैं

मैं नदिया बन जाऊं तो

तुम भी सागर बन जाओ

 

वह सूरत दिखती उसको

जैसी मन में सोच रही

सब तुमको ईश्वर समझें

मेरे प्रियतम बन जाओ

 

देर भई अब तो कान्हा

मत इतना तुम तड़पाओ

लुका-छिपी, खेल न खेलो

मन में मेरे बस जाओ

-        बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

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Comment by बृजेश नीरज on September 12, 2013 at 9:10pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपका हार्दिक आभार!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 12, 2013 at 5:26pm

रचना पहले की है, कह कर आपने बाँध दिया. :-))))

वैसे, सीखने के लिहाज से यह प्रयास सही है. 

लेकिन -

जो कुछ भी देखूं मैं तो

एक तुम ही नजर आओ .. .  इन पंक्तियों का आपने क्या कर दिया है, साईं ?

फेलुन फेलुन कीजिये न,  इस रचना में गेयता खुद ब खुद बैठती जायेगी..  :-)))

शुभ-शुभ

Comment by MAHIMA SHREE on September 11, 2013 at 9:23pm

सुंदर भक्तिरस में रची प्रस्तुति ..बधाई आदरणीय ब्रिजेश जी

 

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 11, 2013 at 9:17pm

आदरणीय ब्रिजेश भाई जी अत्यंत सुन्दर सहज विन्रम प्रेम पगी प्राथना भगवान श्री कृष्ण से की है आपने बहुत ही सुन्दर दृश उकेरा है आपने आनंद आ गया. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें भाई जी एक शंका है क्या प्रभू ठीक है. आम बोलचाल में तो बोल देते हैं

Comment by ram shiromani pathak on September 11, 2013 at 8:40pm

धरती-नभ दूर क्षितिज में

ज्यों आलिंगन करते हैं

मैं नदिया बन जाऊं तो

तुम भी सागर बन जाओ///बहुत ही सुन्दर भाव //हार्दिक बधाई आपको आदरणीय भाई ब्रिजेश जी //सादर 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 11, 2013 at 7:25pm

आ0 बृजेश भाई जी, बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। आपको तहेदिल से बहुत-बहुत बधाई। भाई जी कृपया यह बंद पुनः देखना चाहें....
//वह सूरत दिखती उसको
जैसी मन में सोच रही
सब तुमको ईश्वर समझें
मेरे प्रियतम बन जाओ.//..... सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2013 at 7:07pm

आ0  बृजेश भाई , गेयता तो है !! उम्दा कृष्ण भजन के लिये बधाई !!

Comment by annapurna bajpai on September 10, 2013 at 10:42pm

अति सुंदर आ0 बृजेश जी , गेयता मुखर हो रही है ये मेरा पक्ष है बाकी अन्य सुधी जन बता सकेंगे । इस भजन को हम सब इस तरह गाते थे ..... दया कर दान भक्ति का प्रभू हमको सिखा देना .....

 

आपकी रचना का तर्ज कुछ  कुछ इसी से मिलता है ।

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