For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उठी जो पलकें तीर दिल के आर-पार हुआ

१२२२     १२१२     १२१२         ११२

उठी जो पलकें तीर दिल के आर-पार हुआ

झुकी जो पलकें फिर से दिल पे कोइ वार हुआ

फकत जिसको मैं मानता रहा बड़ी धड़कन

नजर में जग की हादसा यही तो प्यार हुआ

गुलों को छू लें आरजू जवां हुई दिल में

लगा न हाथ था अभी वो तार –तार हुआ

हसीनों की गली में था बड़ा हँसी मौसम

मगर जो हुस्न को छुआ तो हुस्न खार हुआ

किया जो हमने झुक सलाम हुस्न शरमाया

नजर जो फेरी हमने हुस्न बेक़रार हुआ

सफ़र में जो चला था रूठ अजनबी की तरह

पड़े जो छाले पाँव में तो खुद ही भार हुआ

मौलिक व अप्रकाशित 

 

डॉ आशुतोष मिश्र 

Views: 727

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 12, 2013 at 4:52pm

आदरनीय गिरिराज जी , आदरणीया परवीन जी हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 12, 2013 at 10:01am
आदरणीय आशुतोष भाई बढ़िया गज़ल हुई , हार्दिक बधाई !!
Comment by Parveen Malik on September 12, 2013 at 8:20am
बढिया गजल आदरणीय....
Comment by Dr Lalit Kumar Singh on September 12, 2013 at 5:07am

आपकी ग़ज़ल का बहर इस पर आ रहा है-

1212                 1212                 1212        112

उ+ठी+ज+पल   क+ती+र+दिल  क+आ+र+पा  र+हु+आ

झुकी जो पलकें फिर से दिल पे कोइ वार हुआ

1222                 1212                 1212        112 – nahin 

ऐसा करने करने से समस्या का समाधान हो जाता है। ऊपर जो बहर की मात्रा आपने दी है
सिर्फ इसे सही करना है।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 11, 2013 at 9:54pm

आदरनीय अरुण जी ..आप का सहयोग मुझे निरंतर मिलता है ..आप यूं ही मार्गदर्शन करते रहे ..लगा ही हाथ था अभी वो तार-तार हुआ ...क्या ये सही रहेगा .कृपया मार्गदर्शन करें .सादर धन्यवाद के साथ

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 11, 2013 at 9:51pm

आदरनीय ललित जी आप सभी के मार्गदर्शन की मुझे सदैव जरूरत रहेगी. आपकी बात से मैं सहमत हूँ .गाकर देखने में समस्या स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रही है ..मैंने सिर्फ बहर को मात्र के हिसाब से देखा ..आपकी इस बहर पर प्रयास करूंगा ..कामना करता हूँ की भविष्य में भी आपका आशीर्वाद मुझे हमेशा इसी तरह मिलता रहेगा ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 11, 2013 at 9:46pm

आदरनीय राजवीर जी, आदरनीय शिज्जू जी हौसला अफजाई के लिए तहे दिल धन्यवाद ..कामना करता हूँ आप सभी का स्नेह ऐसे ही मिलता रहेगा ..सादर 

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 11, 2013 at 8:04pm

आदरणीय प्रयास बहुत ही सुन्दर किया है आपने ग़ज़ल पर आपका प्रयास रंग अवश्य लाएगा प्रयासरत रहें इस ग़ज़ल पर मेरी ओर से बधाई स्वीकारें.

लगा न हाथ था अभी वो तार –तार हुआ ....  मात्रा गणना पुनः कर लें.

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on September 11, 2013 at 7:31pm

डॉ साहब, कोशिश तो बेहतर हुई है, लेकिन आपने गा कर शायद नहीं देखा. उला मिसरे में रबानी मन लायक नहीं है.

सानी मिसरा  ठीक चलता है।  .

मैंने आपके लिए एक दूसरा बहर चुना है. शायद पसंद आये –

121  22  121  22  121  22  121  22  

बहरे मुतकारिब मुसम्मन मकबूज असलम / १६ रुकनी

उठी जो पलकें तुम्हारी जानम, ये तीर अन्दर चुभा हुआ है

सभी मुझे बस यही पूछते ये हाल कैसे तेरा हुआ है

गुस्ताखी माफ़. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 11, 2013 at 4:23pm

डॉ आशुतोष सर ग़ज़ल पे अच्छी कोशिश हुई है बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
yesterday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service