For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पीने लगे हैं लोग पिलाने लगे हैं लोग

२२१२   १२१     १२२१   २२२१

पीने लगे हैं लोग पिलाने लगे हैं लोग

महफ़िल को मयकदों सा सजाने लगे हैं लोग

 

दिल में नहीं था प्रेम दिखाने लगे हैं लोग

जब भी मिले हैं, हाथ मिलाने लगे हैं लोग

 

आयी थी रूह बीच में जब भी बुरे थे काम

अब तो सदाये रूह दबाने लगे हैं लोग

 

कश्ती बचा ली, खुद को डुबो कहते थे मल्हार

खुद को बचा के नाव डुबोने लगे हैं लोग

 

रखनी जो बात याद किसी को नहीं थी याद

जो भूलना नहीं था भुलाने लगे हैं लोग

 

कुछ हो, मगर वो प्यार कभी हो नहीं सकता है

करके जिसे निगाह चुराने लगे हैं लोग

 

तस्वीर अब जमाने की बदली है देखो आशु  

अपनी खुशी में सब को रुलाने लगे हैं लोग

 

डॉ आशुतोष मिश्र

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 739

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on September 25, 2013 at 1:51pm

अपनी खुशी में सबको रुलाने लगे हैं लोग!! वाह्ह क्या बात कही आदरणीय डॉ साहब। बधाई।

Comment by बृजेश नीरज on September 16, 2013 at 5:28pm

आदरणीय आशुतोष जी मेरे हिसाब से तो यहाँ पर 'मल्लाह' शब्द प्रयोग होना चाहिए. 'मल्हार' तो राग होता है.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 16, 2013 at 10:14am

आदरणीय विजय सर  ..हौसला अफजाई के लिए हार्दिक धन्यवाद ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 16, 2013 at 10:12am

आदरणीय ब्रिजेश जी ..मल्हार को मैंने एक प्रतीक के रूप में प्र्योघ किया है ..देश के कश्ती के खेवन हार .वो तमाम लोग जो देश का प्रतिनिधितव करते थे ...देश के लिए जान भी देने को तैयार रहते थे ..नाविकों को भी ये ही सिखाया जाता था की अपने प्राण जोखिम में डालकर सबी रक्षा करना ..अब इसका उल्टा है .कर्णधार  अपनी जान बचाने में लगे है देश से कुछ लेना देना नहीं 

Comment by vijay nikore on September 16, 2013 at 4:20am

वाह...वाह। खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई आपको।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by वीनस केसरी on September 16, 2013 at 1:39am

आदरणीय आशुतोष जी यहाँ पर अरूज़ पर चर्चा करना उचित नहीं होगा ... हम रचना पर केंद्रित रहें
मैंने उचित स्थान पर विस्तार से चर्चा किया है ... आपको सन्दर्भ प्रस्तुत कर रहा हूँ -

http://www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn/forum/topics/5...

Comment by बृजेश नीरज on September 15, 2013 at 9:30pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है. आपको हार्दिक बधाई! 

एक जिज्ञासा थी कि 'कहते थे मल्हार' का यहाँ क्या मतलब है?

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 15, 2013 at 1:02pm

आदरणीय केवल जी , अरुण जी ....आप सब का प्रोत्साहन ही मुझे कुछ नया लिखने के लिए सतत प्रेरित करता है ..बस यूं ही स्नेह बनाये रखियेगा ..हार्दिक धन्यवाद के साथ 

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 15, 2013 at 12:08pm

आदरणीय सर बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने बेहद उम्दा बधाई स्वीकारें.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 15, 2013 at 9:46am

आदरणीय आशुतोष भार्इ जी,  सादर प्रणाम!   बेहतरीन गजल हुर्इ है। बहुत खूब!  ढेरों दाद कुबूल करें।   सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
3 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
3 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
3 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
4 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
10 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service