२१२२ २१२२ २१२
खोजता तू रेत पर जिनके निशान
अब सभी वो मीत तेरे आसमान
हैं घरोंदे तेरे रोशन जुगनुओं से
उनके घर दीपक जले सूरज समान
उनके घर में तब जवाँ होती है शाम
तीरगी में जब छुपे सारा जहान
वक़्त का ही खेल है सारा यहाँ पे
देखते कब होता हम पर मिहरवान
वो नवाबों जैसी जीते हैं हयात
हम फकीरी को समझते अपनी शान
दौड़ कर ही तेज वो पीछे हुये थे
भूल बैठे गोल है अपना जहान
झोपड़े को देख कर वो हँस रहे थे
दब गया महलों के मलवे में गुमान
मौलिक व अप्रकाशित
डॉ आशुतोष मिश्र
Comment
गजल की भावभूमि अच्छी लगी, हार्दिक बधाई आदरणीय।
अरुण जी आपसे मैं बिलकुल सहमत हूँ ..आपके मशविरे पर पूरा ध्यान दूंगा ..हार्दिक धन्यवाद के साथ
आदरणीय आशुतोष जी आप वाकई ग़ज़ल पर बहुत मेहनत कर रहे हैं, किन्तु मेहनत के साथ साथ ध्यान देने की भी आवश्यकता है. बाकी आदरणीय सौरभ सर एवं शिज्जू जी ने कह ही दिया है उनकी बातों पर ध्यान दें. इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें.
आ0 आशुतोष जी सुंदर गजल । बधाई आपको ।
आदरणीय शिज्जू जी ..मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद ......मैं आपकी बात से बिलकुल सहमत हूँ .. भविष्य में भी आपका स्नेह और मार्गदर्शन यूं ही मिलता रहेगा ..ऐसी अभिलाषा के साथ
आदरणीय सौरभ जी ..आपके स्नेहिल शब्दों से बड़ा संबल मिला ..उधृत मिसरों से अपनी कमी का अहसास हुआ ..भविष्य में मैं इस का ध्यान रखूंगा ..सादर प्रणाम के साथ
आदरणीय डॉ आशुतोष जी ग़ज़ल के पीछे आप निस्संदेह मेहनत कर रहे हैं लेकिन मै एक हकीर राय आपको देना चाहता हूँ आप अपनी ग़ज़ल के हर शेर को पर्याप्त समय दें लिखने के बाद बार बार पढ़ें पहले आप स्वयं आश्वस्त हों उसके बाद आप पेश करें, चाहे जितना भी वक्त लगे.
कुछ बातें और आपसे साझा करना चाहूँगा
किसी भी अरकान के आखिर में आप अतिरिक्त लघु ले सकते हैं बशर्ते वह शब्द का एक हिस्सा हो न कि मुकम्मल शब्द और इसे बह्र मे शामिल नही किया जाता, एक बात और ध्यान देने की है अतिरिक्त लघु लघु ही होना चाहिये दीर्घ को गिरा कर लघु नही किया जाना चाहिये,
सादर
१. हैं घरोंदे तेरे रोशन जुगनुओं से = हैं घरोंदे तेरे रोशन जुगनुओं .. यह वाक्य भी मायनों के लिहाज से सही है. या ठीक कर लें.
२. वक़्त का ही खेल है सारा यहाँ पे = वक़्त का ही खेल है सारा यहाँ
३. देखते कब होता हम पर मिहरवान = मिहरवान शब्द को ठीक कर लें. बस.
४. दौड़ कर ही तेज वो पीछे हुये थे = दौड़ कर वो तेज पीछे हो गये या तेज दौड़े फिर भी पीछे हो गये.. या ऐसा ही कुछ.
५. झोपड़े को देख कर वो हँस रहे थे = झोपड़े को देख वो क्या हँस रहे .. या ऐसा ही कुछ.
आगे आपकी पूरी ग़ज़ल दुरुस्त है, आदरणीय आशुतोष भाईजी. आपने भी देखा होगा जो मिसरे ऊपर उद्धृत हुए हैं उनमें क्या कमी थी और मिसरे कैसे सही माने जायेंगे.
आपसे सादर अनुरोध है कि इस मंच पर आपस में सीखने के अर्थ और मर्म को समझें. महाविद्वान यहाँ कोई नहीं, न ही कोई पुराना और सक्रिय सदस्य इसका डंका पीटता है.
हर नया सदस्य अपनी दुनिया लेकर आता है और उसी नज़रिये से हमारे मंच के वातावरण को भी देखता-समझता है. मगर धीरे-धीरे वह भी समझ-बूझ कर समरस हो जाता है. जो कतिपय कारणों से समरस नहीं हो पाते वे वाही-तबाही बकते हुए माहौल खराब करते फिरते हैं और आखिर में अपनी राह निकल जाते हैं.
हाँ, डॉ. ललित क्या कुछ कर रहे हैं, संभवतः आने वाले दिनों में उनको भी भान हो जायेगा. फिलहाल वे भी कुछ-कुछ कह ही रहे हैं. और हम सब भी सुन ही रहे हैं. यह अवश्य है कि खुन्नस में कुछ कह जाना या सुझाव आदि दे देना उचित नहीं.
सादर
आदरणीय अविनव जी ..आपकी सलाह पर अमल करते हुए भरसक प्रयास करूंगा ..आपसे यूं ही मार्गदर्शन की सतत उम्मीद के साथ ..
आदरणीय डॉ ललित जी ..आपने मेरी मनोदशा को सही पढ़ा ..सर एक बात आपसे पूछनी थी ,,,खोजता तू रेत पर जिनके निशान ,,की बहर २१२२ २१२२ २१२१ हो सकती है की नहीं ...मैंने पहले यही बहर रखी थी ..लेकिन कहीं पढ़ा था की अंत में १ का जिकर करने की जरूरत नहीं होती है ..मैं शायद इस बात के मर्म को नहीं समझ सका ....मिहरबान,,,,,गुमान का दबना ,, लिखने जैसी गलती वाकई नहीं होनी थी ..इस पक्ष की जानकारी होने के बाद ऐसी गलती वाकई मेरी लापरवाही है ... आपकी ग़ज़ल पढी ...उससे मुझे बड़ा मार्गदर्शन मिला ..आप जैसे बिद्वत जनों का सानिध्य मिलता रहेगा तो निरंतर सीखने को मिलेगा ....रही बात नारजगी की तो छात्र यदि नाराज हो गया तो उसके जीवन में कोई ऐसी रिक्तता रह जायेगी जिसे तमाम जीवन वो भर नहीं पायेगा ..बस यूं ही आशीर्वाद बनाये रखें ......सादर प्रणाम के साथ
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