For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बाज़ार

संजीदे संगीन ख़यालों-ख़वाबों भरा बाज़ार

उसमें मेरी ज़िन्दगी, सब्ज़ी की टोकरी-सी।

कुछ सादी सच्चाईयाँ भरीं उस टोकरी में,

प्यार के कच्चे-मीठे-कड़वे झूठों का भार,

चाकलेट के लिए वह छोटे बचकाने झगड़े,

शैतानी भी, और बचपन के खेल-खिलवाड़।

भीड़ में भीड़ बनने की थी बेकार की कोशिश,

बनावटी रंगों की बेशुमार बनावटी सब्ज़ियाँ,

मफ़्रूज़ कागज़ के फूल यह असली-से लगते,

थक गया हूँ अब इनसे इस टोकरी को भरते।

वह पहचान, वह तारीफ़, वह आदर के लफ़्ज़,

नुमाइशी थे, तिजारत में रिश्ते के दाम थे यह,

कुछ खूबसूरत वा’दे ए वस्ल, वह रंगीन बातें,

कैसा हिसाब था उनका, मफ़्लूक हुईं मेरी रातें।

नादान था मैं, ज़िन्दगी भर नादान ही रहा,

खेल था उनके लिए, मैं उनका खेल ही रहा,

पर दिल ही दिल में हर पल, उन्हें क्या पता

ज़ारज़ार रोया पर उनका शुक्रगुज़ार था रहा।

लबों पर मुश्किल से ली उधार की मुस्कान,

कुछ औरों के दर्द भी रखे थे जेब में गिरवी,

हर बार क्यूँ हर सौदे के बाद कुछ ठगा-ठगा,

मैं अपने ही घर में मुसाफ़िर-सा लौट आया ?

हाथ की उलझी-मिटती लकीरों की सलवटें,

भीतर ही भीतर यह चुभती सुबकती कसक,

इतने कड़वे खुरदुरे तजुर्बों की असह वेदना,

हर सवाल ही अब बुनियादी सवाल था बना ...

चल नहीं सकता,फिर कदम उठाया क्यूँ था,

घर से आज इस बाज़ार में मैं आया क्यूँ था ?

                     ----------

 -- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

मफ़्रूज़   = काल्पनिक

मफ़्लूक = दरिद्र

Views: 664

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on September 27, 2013 at 11:14am

आदरणीया प्रियंका जी:

 

आपकी सुशब्द मनोहारी प्रतिक्रिया मेरा उत्साहवर्धन करती है l

परम आदर एवं आभार सहित।

 

विजय निकोर

Comment by Priyanka singh on September 23, 2013 at 9:27pm

संजीदे संगीन ख़यालों-ख़वाबों भरा बाज़ार

उसमें मेरी ज़िन्दगी, सब्ज़ी की टोकरी-सी।........

लबों पर मुश्किल से ली उधार की मुस्कान,

कुछ औरों के दर्द भी रखे थे जेब में गिरवी,

हर बार क्यूँ हर सौदे के बाद कुछ ठगा-ठगा,

मैं अपने ही घर में मुसाफ़िर-सा लौट आया ?.............यूँ तो सम्पूर्ण रचना बहुत अच्छी लगी ....ये कुछ ख़ास पसंद आये 

वाह बहुत खूब ....जैसे सामने चित्रण हो गया क्षण भर के लिए ......क्या तुलना की है सर आपने बहुत ही सुन्दर ....लाजवाब बहुत बहुत बधाई आपको ......

Comment by vijay nikore on September 17, 2013 at 10:08am

//रचना की प्रथम दो पंक्तियाँ ही आपके संजीदे परिपक्व अनुभव को बयाँ कर रही हैं //

 

रचनाके भावों को आपने अनुभव किया, और रचना को सराहा...

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on September 17, 2013 at 10:04am

आदरणीय आशुतोश जी:

 

//जीवन के अनुभवों को व्यक्त करती अत्यंत शसक्त रचना ..

गंभीर चिंतन से ओतप्रोत इस रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें //

 

यह मेरा सौभाग्य है कि आपके इन शब्दों से इस रचना को अनुमोदन मिला।

आपका हार्दिक आभार।

 

सादर,

विजय निकोर

 

Comment by vijay nikore on September 16, 2013 at 7:39am

आदरणीय ’बागी’ जी:

 

//आपकी रचना में अनुभव और परिपक्वता की झलक है, बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर //

 

आपसे प्रतिक्रिया मिलना और वह भी इन शब्दों में मुझको मान देते हुए ...! यह मेरे लिए

विशेष पारितोषिक से कम नहीं।

 

आपका हार्दिक धन्यवाद ... जब भी कठिन क्षणों में मुझको संबल की ज़रूरत हो, क्या मैं

आपसे आपके शब्द सुन सकता हूँ ?

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 15, 2013 at 6:53pm

संजीदे संगीन ख़यालों-ख़वाबों भरा बाज़ार

उसमें मेरी ज़िन्दगी, सब्ज़ी की टोकरी-सी।--आपकी रचना की प्रथम दो पंक्तियाँ ही आपके संजीदे परिपक्व अनुभव को बयाँ कर 

                                                      रहे है | दुनिया जिसने देख ली वह तो औरो दे दर्द से भी अनुभव ले लेता है | तब वह 

                                                      आज के बाज़ार में अपने को फिट नहीं पाता | ऐसे ही भाव लिए सुन्दर रचना के लिए 

हार्दिक बधाई स्वीकारे आदरणीय श्री विजय निकोरे जी 

Comment by vijay nikore on September 15, 2013 at 6:33pm

आदरणीय जितेन्द्र जी:

 

आपने रचना को सराहा, मैं  हृद्यतल से आपका आभारी हूँ।

Comment by vijay nikore on September 15, 2013 at 6:31pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी:

 

रचना की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।

 

Comment by vijay nikore on September 15, 2013 at 2:42pm

आदरणीय अरुन शर्मा जी:

 

रचना के भाव आपको पसन्द आए, आपने मेरा मनोबल बढ़ाया। धन्यवाद।

Comment by vijay nikore on September 15, 2013 at 2:40pm

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय गिरिराज भाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service