बाज़ार
संजीदे संगीन ख़यालों-ख़वाबों भरा बाज़ार
उसमें मेरी ज़िन्दगी, सब्ज़ी की टोकरी-सी।
कुछ सादी सच्चाईयाँ भरीं उस टोकरी में,
प्यार के कच्चे-मीठे-कड़वे झूठों का भार,
चाकलेट के लिए वह छोटे बचकाने झगड़े,
शैतानी भी, और बचपन के खेल-खिलवाड़।
भीड़ में भीड़ बनने की थी बेकार की कोशिश,
बनावटी रंगों की बेशुमार बनावटी सब्ज़ियाँ,
मफ़्रूज़ कागज़ के फूल यह असली-से लगते,
थक गया हूँ अब इनसे इस टोकरी को भरते।
वह पहचान, वह तारीफ़, वह आदर के लफ़्ज़,
नुमाइशी थे, तिजारत में रिश्ते के दाम थे यह,
कुछ खूबसूरत वा’दे ए वस्ल, वह रंगीन बातें,
कैसा हिसाब था उनका, मफ़्लूक हुईं मेरी रातें।
नादान था मैं, ज़िन्दगी भर नादान ही रहा,
खेल था उनके लिए, मैं उनका खेल ही रहा,
पर दिल ही दिल में हर पल, उन्हें क्या पता
ज़ारज़ार रोया पर उनका शुक्रगुज़ार था रहा।
लबों पर मुश्किल से ली उधार की मुस्कान,
कुछ औरों के दर्द भी रखे थे जेब में गिरवी,
हर बार क्यूँ हर सौदे के बाद कुछ ठगा-ठगा,
मैं अपने ही घर में मुसाफ़िर-सा लौट आया ?
हाथ की उलझी-मिटती लकीरों की सलवटें,
भीतर ही भीतर यह चुभती सुबकती कसक,
इतने कड़वे खुरदुरे तजुर्बों की असह वेदना,
हर सवाल ही अब बुनियादी सवाल था बना ...
चल नहीं सकता,फिर कदम उठाया क्यूँ था,
घर से आज इस बाज़ार में मैं आया क्यूँ था ?
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-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
मफ़्रूज़ = काल्पनिक
मफ़्लूक = दरिद्र
Comment
आदरणीया प्रियंका जी:
आपकी सुशब्द मनोहारी प्रतिक्रिया मेरा उत्साहवर्धन करती है l
परम आदर एवं आभार सहित।
विजय निकोर
संजीदे संगीन ख़यालों-ख़वाबों भरा बाज़ार
उसमें मेरी ज़िन्दगी, सब्ज़ी की टोकरी-सी।........
लबों पर मुश्किल से ली उधार की मुस्कान,
कुछ औरों के दर्द भी रखे थे जेब में गिरवी,
हर बार क्यूँ हर सौदे के बाद कुछ ठगा-ठगा,
मैं अपने ही घर में मुसाफ़िर-सा लौट आया ?.............यूँ तो सम्पूर्ण रचना बहुत अच्छी लगी ....ये कुछ ख़ास पसंद आये
वाह बहुत खूब ....जैसे सामने चित्रण हो गया क्षण भर के लिए ......क्या तुलना की है सर आपने बहुत ही सुन्दर ....लाजवाब बहुत बहुत बधाई आपको ......
//रचना की प्रथम दो पंक्तियाँ ही आपके संजीदे परिपक्व अनुभव को बयाँ कर रही हैं //
रचनाके भावों को आपने अनुभव किया, और रचना को सराहा...
आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीय आशुतोश जी:
//जीवन के अनुभवों को व्यक्त करती अत्यंत शसक्त रचना ..
गंभीर चिंतन से ओतप्रोत इस रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें //
यह मेरा सौभाग्य है कि आपके इन शब्दों से इस रचना को अनुमोदन मिला।
आपका हार्दिक आभार।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीय ’बागी’ जी:
//आपकी रचना में अनुभव और परिपक्वता की झलक है, बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर //
आपसे प्रतिक्रिया मिलना और वह भी इन शब्दों में मुझको मान देते हुए ...! यह मेरे लिए
विशेष पारितोषिक से कम नहीं।
आपका हार्दिक धन्यवाद ... जब भी कठिन क्षणों में मुझको संबल की ज़रूरत हो, क्या मैं
आपसे आपके शब्द सुन सकता हूँ ?
सादर,
विजय निकोर
संजीदे संगीन ख़यालों-ख़वाबों भरा बाज़ार
उसमें मेरी ज़िन्दगी, सब्ज़ी की टोकरी-सी।--आपकी रचना की प्रथम दो पंक्तियाँ ही आपके संजीदे परिपक्व अनुभव को बयाँ कर
रहे है | दुनिया जिसने देख ली वह तो औरो दे दर्द से भी अनुभव ले लेता है | तब वह
आज के बाज़ार में अपने को फिट नहीं पाता | ऐसे ही भाव लिए सुन्दर रचना के लिए
हार्दिक बधाई स्वीकारे आदरणीय श्री विजय निकोरे जी
आदरणीय जितेन्द्र जी:
आपने रचना को सराहा, मैं हृद्यतल से आपका आभारी हूँ।
आदरणीया अन्नपूर्णा जी:
रचना की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आदरणीय अरुन शर्मा जी:
रचना के भाव आपको पसन्द आए, आपने मेरा मनोबल बढ़ाया। धन्यवाद।
आपका हार्दिक आभार, आदरणीय गिरिराज भाई।
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