For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- "भूख़ मजबूरी थी,ग़ैरत ना-नुकुर करती रही "

2122 2122 2122 212

भूख़ मजबूरी थी,ग़ैरत ना-नुकुर करती रही

*****************************

तेज़ से भी छटपटाहट तेज़ जब होती रही         

चीख़ दीवारों से टकरा सर कहीं धुनती रही         

 

इक फ़साना अश्क बनके आँख से बहता रहा

और वीरानी उसे खामोश हो सुनती रही

 

रौशनी करने की ठाने,घर के कोने में कहीं          

रात भर कोई शमा ख़ु को कहीं खोती रही        

 

मुख़्तसर अफ़साना मेरी ज़िन्दगी का ये रहा          

हादिसे हँसते रहे र ज़िंदगी रोती रही       

 

इस तरफ था,ख्व़ाब मेरे टूटने का सिलसिला

और फ़ितरत उस तरफ से ख्व़ाब फिर बुनती रही

 

सोचता हूँ पूछ ही लूं,कातिबे तक़दीर से           

कोई दुश्वारी मुझे हर बार क्यूँ चुनती रही 

 

मैं अकेला कब रहा,यादों की पूरी भीड़ थी 

कुछ ख़याल आते रहे तसवीर कुछ बनती रही

 

एक दुविधा थी कहीं पे इसलिये हम रुक गये

भूख़ मजबूरी थी,ग़ैरत ना-नुकुर करती रही                                                    

 

मुख़्तसर--संक्षिप्त

कातिबे तक़दीर---भाग्य लिखने वाला  

ग़ैरत ---स्वाभिमान

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

Views: 879

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 15, 2013 at 12:33pm

वाह वाह लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने क्या कहने पढ़कर आनंद आ गया कुछ अशआर तो दिल को छू गए आदरणीय दिली दाद कुबूल फरमाएं.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 15, 2013 at 10:39am

आदरणीय राजेश कुमारी जी , आप मुझे शर्मिन्दा न करें , आपने मेरे भले के लिये ही सुझाव दिया था , मै अभी सीख ही तो रहा हूँ !! आगे भी आपके मार्ग दर्शन और स्नेह की ज़रूरत ऐसे ही रहेगी !! सादर !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 15, 2013 at 10:33am

आदरणीय वीनस केसरी जी गुस्ताखी माफ़ !! नहीं नहीं आपने तो एक गुरु का धर्म निभाया है मैंने अपने अल्प ज्ञान से जो इस्स्लाह दी थी  उसके लिए तो मुझे आदरणीय गिरिराज जी से गुस्ताखी माफ़ कहना चाहिए ,आपने बहुत बातें स्पष्ट की इस बात की ख़ुशी हो रही है ,और अपना गुरु धर्म निभाया आपकी तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ ज्ञान वृद्धि हेतु  ये इता दोष एक बार आप यहाँ भी समझा दीजिये आपसे गुजारिश है  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 15, 2013 at 9:47am

आदर्णीय अभिनव भाई , आपने तो सराहना मे इतनी बडी बात कह दी , बहुत खुशी हुई !! बहुत आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 15, 2013 at 9:44am

आदरणीय , वीनस भाई ,  क्या कहूँ , इतने विस्तार से और इतना अच्छा कमेंट देख के आनन्दित हूँ , आपका बहुत बहुत आभार !! इता दोषको समझ्नेका प्रयास जारी है , थोडी मुश्किल चीज़ लग रही है !! अपका पुनः हार्दिक आभार !!

Comment by Abhinav Arun on September 15, 2013 at 8:48am

मुख़्तसर अफ़साना मेरी ज़िन्दगी का ये रहा हादिसे हँसते रहे पर ज़िंदगी रोती रही ...वाह वाह श्री गिरिराज जी अरसे बाद ग़ज़ल की भूख को तृप्त करने वाली ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ ..आह्लादित हूँ औपचारिकता नहीं ह्रदय से बधाई आदरणीय कहन और शिल्प हर तरह से कामयाब यादगार ग़ज़ल हुई है ..शुभकामनायें

Comment by वीनस केसरी on September 15, 2013 at 1:17am

आज फुरसत से मंच पर मौजूद हूँ और कई ग़ज़लों पर बहुत कुछ कहते हुए इस ग़ज़ल पर पहुँच रहा हूँ

मुतासिर हुआ हूँ अंदाज़े बयाँ से ... निः संदेह ग़ज़ल कहने का यही लहजा होता है ... बात को इशारों में कहा जाए एक शेर के कई पहलू हों .. अनेक अर्थ हों ... भाई वाह

मैं अकेला कब रहा,यादों की पूरी भीड़ थी 

कुछ ख़याल आते रहे तसवीर कुछ बनती रही

 

एक दुविधा थी कहीं पे इसलिये हम रुक गये

भूख़ मजबूरी थी,ग़ैरत ना-नुकुर करती रही      ........... शानदार तगज्जुल के लिए ढेरो दाद ...



गुस्ताखी की मुआफ़ी के साथ आदरणीया राजेश कुमारी जी की दोनों इस्लाह से अपनी असहमति प्रकट करता हूँ 

ख्याल का वज्न १२१ होता है न कि २१ अलिफ़ वस्ल अशआर की खूबसूरती को बढाता ही है इस लिहाज से मिसरा पहले बहर में था जिसे इस्लाह के साथ ही बेबहर कर दिया गया है 

रौशनी करने की ठाने,घर के कोने में कहीं          

रात भर कोई शमा ख़ु को कहीं खोती रही       

ज़बान के लिहाज से ये शेर बिलकुल दुरुस्त है ठानी करने से अल्फाज़ की अदायगी में ऐब पैदा हो रहा है                               

साथ ही जिस शेर को राजेशकुमारी जी ने पूरे नंबर दिए हैं उस पर यह कहना है कि ख़्वाब टूटने का सिलसिला कि जगह बेहतर होता कि ख़्वाबों के टूटने का सिलसिला होता और सानी में से भर्ती का लफ़्ज़ है इसकी जगह कुछ लफ़्ज़ रखा जाता तो लुत्फ़ कई गुना बढ़ जाता

एक लघु प्रयास प्रस्तुत है .. (शाइर खुद इस शेर को और बेहतर ढंग से कह सकते हैं)


था इधर ख्वाबों के मेरे टूटने का सिलसिला

और फ़ितरत उस तरफ कुछ ख्व़ाब फिर बुनती रही

मतले में इता दोष प्रस्तुत हो रहा है इससे बचना होगा ....

एक और शेर जो इस ग़ज़ल में बेहतरीन हुआ है वो यह है

इक फ़साना अश्क बनके आँख से बहता रहा

और वीरानी उसे खामोश हो सुनती रही

मगर इसमें भी आँख को आखों होना चाहिए .....

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 14, 2013 at 3:21pm

आदरणीया आन्नपूर्णा जी , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 14, 2013 at 3:20pm

आदरणीय जितेन्द्र जी , हौसला अफज़ाई के लिये आपका दिली शुक्रिया !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 14, 2013 at 3:19pm

आदरणीय आशुतोष जी , गज़ल क्कीए सराहना के लिये आपका हारदिक आभार !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service