For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पीने लगे हैं लोग पिलाने लगे हैं लोग

२२१२   १२१     १२२१   २२२१

पीने लगे हैं लोग पिलाने लगे हैं लोग

महफ़िल को मयकदों सा सजाने लगे हैं लोग

 

दिल में नहीं था प्रेम दिखाने लगे हैं लोग

जब भी मिले हैं, हाथ मिलाने लगे हैं लोग

 

आयी थी रूह बीच में जब भी बुरे थे काम

अब तो सदाये रूह दबाने लगे हैं लोग

 

कश्ती बचा ली, खुद को डुबो कहते थे मल्हार

खुद को बचा के नाव डुबोने लगे हैं लोग

 

रखनी जो बात याद किसी को नहीं थी याद

जो भूलना नहीं था भुलाने लगे हैं लोग

 

कुछ हो, मगर वो प्यार कभी हो नहीं सकता है

करके जिसे निगाह चुराने लगे हैं लोग

 

तस्वीर अब जमाने की बदली है देखो आशु  

अपनी खुशी में सब को रुलाने लगे हैं लोग

 

डॉ आशुतोष मिश्र

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 756

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 15, 2013 at 8:44am

आदरणीय वीनस जी ..आपके मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद ..आपके बताये अनुरूप मैं कुछ बाते तो समझ गया लेकिन क्रमांक ४ और ५ पे दिए गए सुझाव को और हिंट दे तो शायद बात मुझे समझ आ पाए .... भैबिस्य में भी मुझे ऐसा ही मार्गदर्शन आपसे मिलता रहे ताकी तमाम तकनीकी पक्षों की जानकारी मुझे हो सके ..पुनः हार्दिक धन्यवाद के साथ 

Comment by वीनस केसरी on September 15, 2013 at 12:01am

बहुत शानादार ग़ज़ल हुई है
एक एक शेर में की गई मेहनत नफासत और नजाकत नुमायाँ है ...

ढेरों दाद क़ुबूल करें ...


कुछ बातें कहने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूँ

१- आपने जो अरकान बताया है उसे गलत तरीके से तोड़ दिया है सही अरकान इस प्रकार टूटता है -
२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२

२ - अंत में लिया गया लघु अतिरिक्त होता है जिसे अरकान लिखना जरूरी नहीं है

३ - आपने अंत के २१२ को २२२ लिख दिया है जबकि ग़ज़ल में इसे आपने २१२ की तर्ज पर ही निभाया है (एक जगह शेर बेबहर है)

४- अतिरिक्त लघु के लिए स्वतंत्र शब्द लेना मिसरे को बेबहर कर देता है

५-अतिरिक्त लघु के लिए दीर्घ शब्द ले कर उसे गिरा कर अतिरिक्त लघु बनाना मिसरे को बेबहर कर देता है (इसके कुछ अपवाद मौजूद हैं)

६ - डुबोने काफ़िया नहीं चल पायेगा .,,, इसे डुबाने होना चाहिए

Comment by annapurna bajpai on September 14, 2013 at 11:17pm
आदरणीय आशुतोष जी बढ़िया गजल हुई है बहुत बधाई आपको ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 14, 2013 at 2:23pm

आदरणीय अखिलेश जी ..हौसला अफजाई के लिए तहे दिल शुक्रीया 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 14, 2013 at 2:08pm

तथा कथित अंग्रेजी परस्त / अभिजात्य वर्ग पर अग्नि बाण छोड़ने के लिए बधाई और हिंदी दिवस की शुभकामना आशुतोषजी  ! 

और अंग्रेजी परस्त अभिजात्य वर्ग के लिए---   घर को मयकदों सा सजाने लगे हैं लोग ।

 नहीं थी याद //   नहीं है याद ।

हो नहीं सकता है //  हो नहीं सकता ।  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 14, 2013 at 12:28pm

आदरनीय जितेंद्रजी , आदरनीय गिरिराज जी , आदरणीया परवीन जी ..हौसला अफजाई के लिए हार्दिक धन्यवाद ..अपना स्नेह यूं ही बनाए रखें ...सादर प्रणाम के साथ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 14, 2013 at 12:03pm

आदरणीय आशुतोष जी , बढ़िया गज़ल हुई है , बधाई

आयी थी रूह बीच में जब भी बुरे थे काम

अब तो सदाये रूह दबाने लगे हैं लोग ----------------- लाजवाब बात कही !!

एक जगह टंकण त्रुटि से क़ाफिया डुबोने लिख गया है , डुबाने की जगह !!

Comment by Parveen Malik on September 14, 2013 at 12:01pm
आदरणीय बहुत बढ़िया गजल ... बधाई !
तस्वीर अब जमाने की बदली है देखो आशु
अपनी खुशी में सब को रुलाने लगे हैं लोग
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 14, 2013 at 11:27am

दिल में नहीं था प्रेम दिखाने लगे हैं लोग

जब भी मिले हैं, हाथ मिलाने लगे हैं लोग........वाह! यह शेर बहुत पसंद आया

बहुत बढ़िया गजल , तहे दिल से दाद कुबूल कीजिये आदरणीय डा. आशुतोष जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"आदरणीय सुरेश भाई , बढ़िया दोहा ग़ज़ल कही , बहुत बधाई आपको "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service