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वज़न -२२१२ २२१२ 

ठगते रहे सब प्यार में!
बिकता रहा बाज़ार में !!

लेने चला मै रौशनी!
पागल सा अन्धे गार में !! 

खुद ही बताता है जखम !
थी धार क्या औज़ार में !!

कैसे नहीं गिरती भला !
थी रेत ही दीवार में !!

कैसे करूँ तारीफ़ मै!
दम ही कहाँ अशआर में !!
****************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"

मौलिक/अप्रकाशित  

Views: 940

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Comment by ram shiromani pathak on September 18, 2013 at 10:28am

बहुत बहुत आभार आदरणीय  भाई अरुण शर्मा  जी ///स्नेह यूँ ही बनाए रखें ///सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 18, 2013 at 10:27am

बहुत बहुत आभार भाई चन्द्र शेखर जी प्रोत्साहित करने के लिए // मात्रापतन के नियम के अनुसार क्या //सा// का मात्रापतन संभव है?// जी भाई संभव है //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 18, 2013 at 10:25am

बहुत बहुत आभार भाई सलीम  जी//सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 18, 2013 at 10:25am

बहुत बहुत आभार आदरणीया मंजरी जी//सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 18, 2013 at 10:24am

बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज  जी प्रोत्साहित करने के लिए //स्नेह यूँ ही बनाये रखें //सादर 

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 17, 2013 at 10:34pm

छोटी बहर में खूबसूरत ग़ज़ल अनुज बहुत खूब क्या कहने लाजवाब अशआर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on September 17, 2013 at 10:02pm

धारदार कहन है आदरणीय पाठक जी। बधाई। छोटी बहर पर कमाल की कलम चलाई है आपने।  //पागल सा अन्धे गार में// इसकी तक्तीअ //22 2 2/2 212// हो रही है शायद, वैसे मात्रापतन के नियम के अनुसार क्या //सा// का मात्रापतन संभव है?

Comment by mrs manjari pandey on September 17, 2013 at 9:18pm

बहुत अच्छी गज़ल . बधाई

Comment by saalim sheikh on September 17, 2013 at 2:39pm

सुंदर रचना के लिये बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 17, 2013 at 1:42pm

आदरणीय राम भाई , छोटी बहर मे गज़ल कहना ही हिम्मत का काम है , बहुत अच्छी गज़ल कही भाई !! बधाई !!

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