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न रंज करना ठीक है, न तंज करना ठीक
जो दौर बीता उससे यूँ, न फिर गुज़रना ठीक.
कि आखिरी सच मौत, इससे क्यों हमें हो खौफ़
यूँ डर के इससे हर घड़ी, न रोज़ मरना ठीक .
हर्फे आखिरी है जो खुदा ने लिख भेजा किस्मत में,
बने जो आका फिरते, उनसे क्यों हुआ ये डरना ठीक.
कोशिश ही बस में तेरे, खुदा के हाथ अंजाम,
भला लगे तो अच्छा है, बुरा भी वरना ठीक.
लाजिम है वज़न बात में , जो लब से तेरे निकली,
किए अपने ही वादों से, न खुद मुकरना ठीक.
लड़ा के लोगों को, ये रोटियां सियासी सेंकें'
ज़हर ये बदअमनी का है, न यूँ बिखरना ठीक.
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार @ MAHIMA SHREE एवं Sarita Bhatia जी
न रंज करना ठीक है, न तंज करना ठीक
जो दौर बीता उससे यूँ, न फिर गुज़रना ठीक.
कि आखिरी सच मौत, इससे क्यों हमें हो खौफ़
यूँ डर के इससे हर घड़ी, न रोज़ मरना ठीक ....बहुत ही बढ़िया प्रस्तुती आदरणीया शालिनी जी बधाई आपको
शालिनी जी शानदार अशआर लिए गजल कही आपने ,बहुत बहुत बधाई
आदरणीया शालिनी जी बेहद शानदार ग़ज़ल कही है आपने इस हेतु बधाई स्वीकारें बाकी सब अन्य मित्रजनो ने कह ही दिया है.
Shijju Shakoor जी .. बिलकुल सही कहा आपने ... अभी ककहरा भी नहीं आता ग़ज़ल गोई का ... पर प्रयास कर रही हूँ सीखने का ...
शुभकामनाओं हेतु धन्यवाद!
Abhinav Arun जी .. प्रयास कर रही हूँ .. देखती हूँ कब तक ग़ज़ल का गढ़न सीख पाती हूँ ... आप सभी का सहयोग चाहिए ..
साभार!
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी .. बिलकुल सही फ़रमाया आपने .. ग़ज़ल सीखने के पहले पायदान पे खड़ी हूँ मैं अभी .. आज जैसे विज्ञ जनों के मार्गदर्शन से धीरे धीरे कुछ सीख जाउंगी ... अंत में लघु को छुट की तरह मन जाता है .. यह नहीं पता था मुझे ... कोशिश करुँगी की इसकी बहर को सुधार कर पुनः पोस्ट कर सकूँ |
धन्यवाद सहित
आदरणीया शालिनी जी , गज़ल का बहुत अच्छा प्रयास हुआ है , बारीकियो मे अभी हम से भी गलतियाँ हो रही है , आपकी ग़ज़ल मे भी है !! बह्र मे आखिरी मे 1 मात्रा लिखा नही जाता ये छूट की तरह से गिना जाता है अतः बह्र 1 2 1 2 / 2 2 1 2 / 1 2 1 2 / 2 2 होना चाहिये , ऐसा मुझे लगता है !! बेहतरीन प्रयास के लिये बधाई !!!!
कोशिश ही बस में तेरे, खुदा के हाथ अंजाम,
भला लगे तो अच्छा है, बुरा भी वरना ठीक.
...आ. शालिनी जी कोशिश सराहना योग्य है ..बधाई .. ग़ज़ल गोई की मुश्किल राह में आपका भी स्वागत है .. ख़याल अच्छे हैं और ..धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय ..सो ग़ज़ल की गढन भी दुरुस्त हो जतेगी ..लिखते रहिये पढ़ते रहिये ..हम सभी सीख ही रहे हैं
आदरणीया शालिनी जी ग़ज़ल लिखने का प्रयास अच्छा है इस विधा की मूलभूत बातों के प्रति आश्वस्त हो लेना निश्चित ही मेहनत को सफल करेगा, शुभकामनायें
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