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शर्म से हम आँख मीचे क्यूँ रहें

शर्म से हम आँख मीचे क्यूँ रहें

दौड़ है सोहरत की पीछे क्यूँ रहें

 

तब हुए पैदा जमीं पे अब मगर

हौसलों के पर हैं नीचे क्यूँ रहें

 

सच का लज्जत चख चुके हैं हम यहाँ

फिर बता दो हम भी तीखे क्यूँ रहें

 

जानते हैं फल में कीड़े कब लगे

इस कदर फिर हम भी मीठे क्यूँ रहें

 

जिन लकीरों ने कराई जंग है

“दीप” अब तक उनको खींचे क्यूँ रहें

 

संदीप कुमार पटेल “दीप”

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 30, 2013 at 11:46am

आदरणीय सौरभ सर सादर प्रणाम

आपका आशीर्वाद यूँ ही मिलता रहे

बहुत बहुत धन्यवाद आपका

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 30, 2013 at 11:46am

आदरणीय वीनस सर सादर

आपकी इस्लाह सर आँखों ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

सादर धन्यवाद आपका


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 27, 2013 at 11:13pm

जानते हैं फल में कीड़े कब लगे

इस कदर फिर हम भी मीठे क्यूँ रहें...  वाह वाह

और मक्ते के लिए विशेष बधाई दे रहा हूँ.

अन्यान्य सुझावों पर ध्यान दीजियेगा

Comment by वीनस केसरी on September 26, 2013 at 2:21am

वाह भाई
ग़ज़ल पर देर से आ पा रहा हूँ

शानदार इब्तिदा को आपने  खूबसूरत अंजाम बख्शा
मतला से मकता तक हर शेर पसंद आया

कुछ जगह तगज़्ज़ुल को निभा ले गए होते तो लुत्फ़ दोबाला हो जाता
कुछ अल्फाज़ ने भी बदमजगी पैदा की

सोहरत - शुहरत 
सच का लज्जत - सच की लज़्ज़त

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 24, 2013 at 4:18pm

आदरणीया प्रवीन मालिक जी सादर प्रणाम 

इस हौसलाफजाई के लिए आपका बहुत बहुत आभार 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 24, 2013 at 4:18pm

आदरणीय राज साहब सादर 

आपकी इस्लाह सर आँखों स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

सादर 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 24, 2013 at 4:17pm

आदरणीय मित्र अरुण भाई साहब सादर 

आपकी दाद पाना सुखद लगा 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर आभार आपका 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 24, 2013 at 4:17pm

आदरणीय जीतेंद्र जी सादर 

इस सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आपका 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

Comment by Parveen Malik on September 24, 2013 at 12:13pm
आदरणीय संदीप जी बेहतरीन गजल ... बधाई स्वीकारिये !!!
सच का लज्जत चख चुके हैं हम यहाँ
फिर बता दो हम भी तीखे क्यूँ रहें

जानते हैं फल में कीड़े कब लगे
इस कदर फिर हम भी मीठे क्यूँ रहें....
Comment by अरुन 'अनन्त' on September 24, 2013 at 11:00am

वाह मित्रवर वाह कमाल की ग़ज़ल लाजवाब अशआर, सुन्दर संदेशात्मक ग़ज़ल हेतु बहुत बहुत बधाई स्वीकारें भाई.

कृपया ध्यान दे...

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