शर्म से हम आँख मीचे क्यूँ रहें
दौड़ है सोहरत की पीछे क्यूँ रहें
तब हुए पैदा जमीं पे अब मगर
हौसलों के पर हैं नीचे क्यूँ रहें
सच का लज्जत चख चुके हैं हम यहाँ
फिर बता दो हम भी तीखे क्यूँ रहें
जानते हैं फल में कीड़े कब लगे
इस कदर फिर हम भी मीठे क्यूँ रहें
जिन लकीरों ने कराई जंग है
“दीप” अब तक उनको खींचे क्यूँ रहें
संदीप कुमार पटेल “दीप”
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ सर सादर प्रणाम
आपका आशीर्वाद यूँ ही मिलता रहे
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
आदरणीय वीनस सर सादर
आपकी इस्लाह सर आँखों ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
सादर धन्यवाद आपका
जानते हैं फल में कीड़े कब लगे
इस कदर फिर हम भी मीठे क्यूँ रहें... वाह वाह
और मक्ते के लिए विशेष बधाई दे रहा हूँ.
अन्यान्य सुझावों पर ध्यान दीजियेगा
वाह भाई
ग़ज़ल पर देर से आ पा रहा हूँ
शानदार इब्तिदा को आपने खूबसूरत अंजाम बख्शा
मतला से मकता तक हर शेर पसंद आया
कुछ जगह तगज़्ज़ुल को निभा ले गए होते तो लुत्फ़ दोबाला हो जाता
कुछ अल्फाज़ ने भी बदमजगी पैदा की
सोहरत - शुहरत
सच का लज्जत - सच की लज़्ज़त
आदरणीया प्रवीन मालिक जी सादर प्रणाम
इस हौसलाफजाई के लिए आपका बहुत बहुत आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीय राज साहब सादर
आपकी इस्लाह सर आँखों स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
सादर
आदरणीय मित्र अरुण भाई साहब सादर
आपकी दाद पाना सुखद लगा
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर आभार आपका
आदरणीय जीतेंद्र जी सादर
इस सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आपका
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
वाह मित्रवर वाह कमाल की ग़ज़ल लाजवाब अशआर, सुन्दर संदेशात्मक ग़ज़ल हेतु बहुत बहुत बधाई स्वीकारें भाई.
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