शोहरतें पाने मचलता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
हसरतों पे जीता मरता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
यूँ किसी की याद में जलने का मौसम गम भरा
फिर उसी को याद करता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
चोट खाता है मुसलसल जिन्दगी की राह में
तब सनम जैसे सँवरता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
आईने से रू-ब-रू होने की हिम्मत है नहीं
हार के फिर आह भरता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
इल्म है उसको गली ये जा रही है किस तरफ
जान कर उससे गुजरता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
वो हकीकत जानता है कुछ न लाया साथ में
फिर भी देखो हाथ मलता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
दर्द से नज़रें चुराने “दीप” वो सारे बुझा
खुद ही सारी रात जलता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
संदीप कुमार पटेल “दीप”
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीया डॉ प्राची जी
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय मित्रवर अरुण भाई
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय राम भाई
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया प्रवीन मलिक जी सादर
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अनुराग जी सादर
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय जीत जी सादर
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय नीरज नीर जी
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय विजय निकोर सर
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सादर
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सारथी जी सादर....स्नेह बनाये रखिये
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