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शर्म से हम आँख मीचे क्यूँ रहें

शर्म से हम आँख मीचे क्यूँ रहें

दौड़ है सोहरत की पीछे क्यूँ रहें

 

तब हुए पैदा जमीं पे अब मगर

हौसलों के पर हैं नीचे क्यूँ रहें

 

सच का लज्जत चख चुके हैं हम यहाँ

फिर बता दो हम भी तीखे क्यूँ रहें

 

जानते हैं फल में कीड़े कब लगे

इस कदर फिर हम भी मीठे क्यूँ रहें

 

जिन लकीरों ने कराई जंग है

“दीप” अब तक उनको खींचे क्यूँ रहें

 

संदीप कुमार पटेल “दीप”

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by राज़ नवादवी on September 24, 2013 at 7:50am

'सोहरत'- 'शोहरत' 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 23, 2013 at 11:12pm

सच का लज्जत चख चुके हैं हम यहाँ

फिर बता दो हम भी तीखे क्यूँ रहें

बेहद शानदार गजल, बहुत बहुत बधाई आदरणीय संदीप जी

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 23, 2013 at 10:16pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी सादर

आपका बहुत बहुत धन्यवाद स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 23, 2013 at 10:16pm

आदरणीया मीना जी सादर

आपका सराहना हेतु बहुत बहुत धन्यवाद स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 23, 2013 at 10:15pm

आदरणीय अखिलेश जी सादर 

आपका बहुत् बहुत आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 23, 2013 at 10:14pm

आदरणीय शिज्जू जी सादर

आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार

यूँ ही मार्गदर्शन और स्नेह बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 23, 2013 at 10:13pm

आदरणीय रविकर सर जी सादर प्रणाम

आपकी सराहना सर आँखों

स्नेह और आशीष बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 23, 2013 at 10:12pm

आदरणीय गिरिराज जी सादर

उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद आपका

स्नेह बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 23, 2013 at 10:11pm

आदरणीय अभिनव सर जी सादर प्रणाम

हौसलाफजाई के लिए आभारी हूँ

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 23, 2013 at 10:10pm

आदरणीय सलीम साहब आपका बहुत बहुत शुक्रिया

आपके कहे पर विचार करूँगा स्नेह बनाये रखिये

कृपया ध्यान दे...

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