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शर्म से हम आँख मीचे क्यूँ रहें

शर्म से हम आँख मीचे क्यूँ रहें

दौड़ है सोहरत की पीछे क्यूँ रहें

 

तब हुए पैदा जमीं पे अब मगर

हौसलों के पर हैं नीचे क्यूँ रहें

 

सच का लज्जत चख चुके हैं हम यहाँ

फिर बता दो हम भी तीखे क्यूँ रहें

 

जानते हैं फल में कीड़े कब लगे

इस कदर फिर हम भी मीठे क्यूँ रहें

 

जिन लकीरों ने कराई जंग है

“दीप” अब तक उनको खींचे क्यूँ रहें

 

संदीप कुमार पटेल “दीप”

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Abhinav Arun on September 23, 2013 at 6:38am

जिन लकीरों ने कराई जंग है

“दीप” अब तक उनको खींचे क्यूँ रहें

    ...दीप जी सुन्दर भावपूर्ण लिखा है हार्दिक बधाई इस रचना पर

Comment by saalim sheikh on September 23, 2013 at 2:21am
Wah! Bht khoob,Adarniy Sandeep ji,dheron daad
ye do misre zara dekh len
सच 'का' लज्जत चख चुके हैं हम यहाँ
दौड़ है 'सोहरत' की पीछे क्यूँ रहें
shayad typing me galti ho gayi hai

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